Sonal Pandya
मुम्बई, 15 Jan 2021 15:47 IST
लेखिका-निर्देशिका रेणुका शहाणे ने ज़बरदस्त कलाकारों के साथ ऐसे किरदार सामने लाये हैं जो भावनिक संघर्ष में उलझे नज़र आते हैं।
अभिनेत्री रेणुका शहाणे ने त्रिभंग – टेढ़ी मेढ़ी क्रेझी के साथ हिंदी फ़िल्म निर्देशन में अपना पहला कदम रखा है। यह फ़िल्म उनकी पहली निर्देशकीय मराठी फ़िल्म रीटा (२००९) की तरह पारिवारिक रिश्तों के नाज़ुक संबंधों पर भाष्य करती है। एक परिवार की तीन पीढ़ियों की महिलाओं के साथ इसे कलात्मक ढंग से पेश किया गया है।
नयनतारा आपटे (तन्वी आज़मी) एक मशहूर लेखिका है जो अपनी बेटी अनु (काजोल) और पोती माशा (मिथिला पालकर) से अलग रहती है। जब अचानक वो कोमा में चली जाती है तो उसके परिवार जन और पास के लोग इकठ्ठा होते हैं। इसी के साथ उसका भूतकाल और उसके साथ जुडी शत्रुता और विरूपता भी सामने आती है। अनु एक प्रसिद्ध नृत्यांगना और फ़िल्म स्टार है। अपनी माँ के लिए उसके मन में गुस्सा है के उसने अपने पति को छोड़ ऐसा जीवन चुना जिससे उसकी हालत बहुत बुरी हुई।
नयनतारा के कोमा में जाने के बाद उसका बेटा रोबिंद्रो (वैभव तत्ववादी), अनु और माशा उसके पास आते हैं। इसी बीच उनकी मुलाकात मिलन उपाध्याय (कुणाल रॉय कपूर) से होती है, जो नयनतारा की ज़िंदगी और उसके सफ़र का डॉक्युमेंटेशन कर रहा है। जैसे जैसे वे एक दूसरे के साथ समय बिताते हैं, उनके मन में रही गलतफहमियाँ और दुःख बाहर आते हैं और साथ ही इन्हे धीरे धीरे जाने देना चाहिए, ये भी पता चलने लगता है।
नयन के बच्चे एक दूसरे से बिलकुल अलग हैं। अनु तीखी और कड़वी स्वभाव की है, जिस वजह से सबको उसका व्यवहार गलत लगता है, वहीं रोबिंद्रो धर्म की शरण में जा चुका है, हालाँकि उसकी माँ नास्तिक है। दोनों का रिश्ता गहरा है। काजोल और तत्ववादी ने बहन-भाई के ये किरदार बहुत ही सहज और स्वाभाविक ढंग से पेश किये हैं।
काजोल का डिजिटल की दुनिया में ये पहला कदम है। उनका किरदार अनु अतिसंवेदनशील है और बचपन में जो उसके साथ घटा है, उसके बाद उसमे ज़्यादा बदलाव नहीं आया है। उसका बदलता स्वभाव त्रिभंग को आगे बढ़ाता है। उसे उसीके अंदाज़ में सीख मिलती है जब उसकी बेटी माशा उसे उसके बचपन के दर्दनाक घटना के लिए ज़ीम्मेदार ठहराती है। मात्र माशा उसके परिवार के बाकि औरतों से अधिक समझदार और शांत है।
शहाणे ने हरेक स्त्री पात्र के विरोधाभास और उनके चयन को खूबसूरती से दर्शाया है, हालाँकि नयन के बारे में हमें उतनी जानकारी नहीं मिलती जितनी की अपेक्षा होती है। फ़िल्म में कई फ्लैशबैक दर्शाये गए हैं, जिनमे इन स्त्रियों के भावनिक संघर्ष के क्षण आते हैं, पर लेखन में भुत और वर्तमान को जोड़नेवाले क्षणों को सजा कर दिखाया गया है।
माँ और बेटी के बीच के संवादक के रूप में रॉय कपूर ने हास्य-व्यंग के क्षण लाए हैं और उनके बोलने में शुद्ध हिंदी का प्रयोग किया गया है। पर कवलजीत सिंह और मानव गोहिल के किरदार को ज़्यादा महत्त्व नहीं मिल पाया है, क्योंकि आपटे परिवार के स्त्री पात्रों पर यहाँ अधिक ज़ोर दिया गया स्पष्ट नज़र आता है। फ़िल्म के पुरुष पात्र बिना कोई खास छाप छोड़े आते-जाते रहते हैं।
परिवार के संघर्ष की कहानी बताते हुए भी त्रिभंग में भुतकाल पर बात करते हुए उसे पीछे छोड़ देने की सलाह मिलती है। खास कर अनु के स्वभाव में इस बदलाव को स्पष्ट देखा जा सकता है। नयन एक रहस्य बन कर रह जाती है, जैसे उसे शुरू में भी दर्शाया गया है और हम कुछ और देखने की प्रतीक्षा करते रह जाते हैं।
त्रिभंग – टेढ़ी मेढ़ी क्रेझी नेटफ्लिक्स पर उपलब्ध है।
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