Suparna Thombare
Mumbai, 22 Feb 2019 14:41 IST
निर्देशक इंद्र कुमार की टोटल धमाल मूर्खतापूर्ण जोक्स, ख़राब वी एफ एक्स और हास्यास्पद कहानीसे भरी पड़ी है।
सोचिये, आपके पास अनिल कपूर, माधुरी दीक्षित, अजय देवगन, रितेश देशमुख, अरशद वारसी, जावेद जाफरी, संजय मिश्र, बमन ईरानी, जॉनी लीवर, विजय पाटकर, पीतोभाष, अश्विन मुश्रान, मनोज पाहवा, महेश मांजरेकर और सुदेश लाहिरी जैसे कलाकारों की भीड़ हो और ये सब कॉमेडी के नाम पर दुनिया की सबसे मूर्खतापूर्ण चीज़ें कर रहें हो। बस, यही टोटल धमाल है।
टोटल धमाल में धमाल की कहानी को ज्यों के त्यों दोहराया गया है।
एक भष्ट्र पुलिस कमिशनर (बमन ईरानी) से चुराए हुए रु50 करोड़ कहॉं छुपाये हैं इसका राज़ एक मरता हुआ आदमी (मनोज पाहवा) कुछ लालची आदमियों के सामने खोलता है और ये सारे लोग जोड़ियों में जो भी साधन मिले उससे वहाँ तक पहुंचने के लिए निकल पड़ते हैं।
ये धन एक चिड़ियाघर में छुपाया हुआ है और वो भी किसी बड़े साकेंतिक चिन्ह के निचे। भालू, बाघ, शेर, गेंडा और बंदर सभी इस भागमभाग में जुड़ जाते हैं, जिसका इरादा शायद ये हो के अगर इंसान कम पड़ जाएं तो उनकी कमी ये जानवर ही पूरी कर देंगे।
कहानी को थोड़ा अर्थ प्राप्त हो जाये इसलिए अंत में एक अच्छासा क्लाइमैक्स भी है जहाँ प्राणियों को बचाने की आवश्यकता को बता कर हमें ज्ञान प्राप्ति करा दी गयी है। गौर करें तो ये बातें हमें किसी चिड़ियाघर में समझायी जाती हैं, जहाँ प्राणी कैद होते हैं।
टोटल धमाल मूर्खतापूर्ण जोक्स, ख़राब वी एफ एक्स और हास्यास्पद कथा अंशोंसे भरी पड़ी है।
फ़िल्म का पहला हिस्सा ज़्यादातर फ़िल्म के ढेर सारे किरदारों का परिचय कराने में और पुराने थके हुए ख़राब जोक्स में खर्च हो जाता है।
आर्ट गैलरी फार्ट गैलरी बनने का जोक हो या रितेश देशमुख और पितोभाष जो की अग्निशमन दल के फायर फाइटर्स हैं, लोगों से उनकी जान बचाने के लिए पैसे मांगते हैं, ऐसे दृश्यों पर आप हसें या रोयें ये आप तय नहीं कर पाते हैं।
पर धीरे धीरे फ़िल्म आपको हँसाने लगती है। शायद आप उस माहौल को स्वीकारते हैं और धीरे धीरे उन्ही मूर्खतापूर्ण कथा अंशों पर और जोक्स पर आपको हसी आने लगती है।
अब वेद प्रकाश, पारितोष पेंटर और बंटी राठौड़ जैसे लेखकों ने लिखे हुए ढेर सारे व्यँग, जोक्स, किरदार, कथा अंश मेंसे कुछ तो आपको हसाएंगे ही, है ना?
जैकी श्रॉफ का चिंधी जीपीएस वाला दृश्य, विजय पाटकर बमन ईरानी का अपमान करते हैं वो दृश्य, रितेश देशमुख भगवान को घूस दे रहे हैं वो दृश्य, और जॉनी लीवर का ऑटो रिक्शावाला हेलीकॉप्टर दृश्य ऐसे कुछ मज़ेदार क्षण आपको हसाते हैं।
अरशद वारसी और जावेद जाफरी के आदि मानव किरदार इन सभी किरदारों में सबसे मज़ेदार हैं और उनकी अपनी अलग कहानी पर भी नयी फ़िल्म की जा सकती है। उन्हें सिर्फ़ धमाल फ्रैंचाइज़ में इस्तेमाल करना उन किरदारों के साथ ज़्यादती हो सकती है।
वहीं दूसरी तरफ १९ वर्ष बाद इस फ़िल्म द्वारा माधुरी दीक्षित और अनिल कपूर एक साथ बड़े परदे पर आये हैं। इस फ़िल्म में वे एक शादीशुदा जोड़ी हैं और डिवोर्स के कगार पर खड़े हैं। पर दुर्भाग्यवश उनकी जोड़ी का कमाल दिखाने के लिए उन्हें बहुत कष्ट पड़ रहे हैं, ऐसा महसूस होता है।
धमाल सीरीज़ की बाकी दो फ़िल्मों की तरह ये फ़िल्म भी अतरंगी और मूर्खतासे भरी है पर काफ़ी हिस्सों में मज़ेदार भी है।
अगर आप कुछ अच्छे कलाकारों को खुद की हसी बनाते हुए देखना चाहते हैं तो ये फ़िल्म आपके लिए है। अगर आप छह वर्ष के बच्चों के लिए बनाये गए जोक्स पर हस सकते हैं, तब तो आप जरूर जायें, ये फ़िल्म आपकी राह देख रही है।
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