Sonal Pandya
मुम्बई, 16 Jul 2021 14:29 IST
फ़िल्म में फरहान अख़्तर ने जो शारीरिक बदलाव दिखाया है, वो निश्चित ही सराहनीय है, पर राकेश ओमप्रकाश मेहरा की ये फ़िल्म कई रास्ते बदलते रहती है।
ये कहानी हम कई सारी स्पोर्ट्स फ़िल्मों में देख चुके हैं। एक उपेक्षित प्रतिभावान का अपनी प्रतिभा को सिद्ध करने और टीकाकारों को गलत साबित करने का संघर्ष, और सभी मुश्किलों को पार करते हुए विजय प्राप्त करना यही कहानी आम तौर पर देखि जाती है। राकेश ओमप्रकाश मेहरा की तूफ़ान (२०२१) भी इसी रास्ते पर चलती है और दुर्भाग्य से यहाँ कोई नयी चीज़ देखने नहीं मिलती।
डोंगरी में रहनेवाला अज़ीज़ अली उर्फ अज्जूभाई (फरहान अख़्तर) ये वहाँ का छोटा मोटा 'भाई' है। वो और उसका दोस्त मुन्ना (हुसैन दलाल) डॉन जाफरभाई (विजय राज) के लिए वसूली का काम करते हैं। पर डॉ अनन्या (मृणाल ठाकुर) से मिलने के बाद वो ये गुंडागर्दी वाली ज़िंदगी छोड़ने का फैसला करता है और बॉक्सिंग शुरू करता है।
बॉक्सिंग में जी जान लगाने के लिए वो मशहूर कोच नारायण 'नाना' प्रभु (परेश रावल) से मिलता है। पहले कोच उसकी काबिलियत और उसकी निष्ठा पर सवाल खड़ा करता है। पर बाद में अज़ीज़ अली को सिखाता है और स्टेट चैम्पियन बनाता है। अज़ीज़ हर प्रतियोगिता जीतने लगता है और उसे अब तूफ़ान कहा जाता है। फ़िल्म का पहला हिस्सा डोंगरी के एक अनाथ लड़के का चैम्पियन बनने का सफर दर्शाता है। इसके बाद कहानी का रुख बदलता है।
अनन्या हिन्दू और अज़ीज़ मुस्लिम। दोनों को अनन्या के परिवार का विरोध सहन करना पड़ता है। अज़ीज़ भी हारने लगता है, कोच से अलग होना पड़ता है और उसकी बॉक्सिंग पर पाबंदी आ जाती है। अपने खोये हुए नाम को फिर से पाने और फिर से चैम्पियन बनने का संघर्ष बाकी कहानी को बनाता है।
मेहरा और लेखक अंजुम राजाबलि और विजय मौर्य ने फ़िल्म को कट्टरता से लेकर मैच फिक्सिंग जैसे कई विषयों से जोड़ा है। फ़िल्म के आखिर के आधे घंटे में अली का पुराना प्रतिद्वंदी धर्मेश (दर्शन कुमार) उसके खिलाफ षडयंत्र रचने वापस आता है। मेहरा और उनकी टीम ने फरहान अख़्तर के अज़ीज़ की ओर कई मुश्किलें फेंकी हैं, जिसे उन्होंने आसानीसे संभाला है। फ़िल्म की गति और पूरा माहौल इस तरह से रचा गया है के हम जानते हैं के अज़ीज़ अंत में हार नहीं सकता।
१६३ मिनिट लंबी फ़िल्म खींची हुई लगती है और 'स्टार है तू' जैसा गाना भी कोई असर नहीं छोड़ता। अरिजीत सिंह द्वारा गाया हुआ और शंकर-एहसान-लॉय द्वारा संगीतबद्ध 'अनन्या' जैसे गाने, जो पार्श्वभूमी में बजते है, अच्छे लगते हैं।
फरहान अख़्तर ने अज्जूभाई से अज़ीज़ अली बॉक्सर का सफर संजीदगी से दर्शाया है। फरहान अख़्तर खुद इस फ़िल्म के सह-निर्माता भी हैं। यहाँ अज़ीज़ के दो बड़े ही ज़बरदस्त ट्रेनिंग सेशन्स दिखाए गए हैं, जिनमें से एक में वो पहली बार चैम्पियन बनने के लिए तैयारी कर रहा है और दूसरे में उसके शरीर का आकार बिगड़ा हुआ है। इस पूरी तैयारी में फरहान अख़्तरने अपने आप को झोंक दिया हैं, हालाँकि फ़िल्म के पहले भाग में उनकी उम्र झलकती है।
मृणाल ठाकुर सहायक प्रेमिका की भूमिका में अच्छी लगती हैं। रावल का किरदार गुस्सैल कोच और कट्टर इंसान का है, जिसे अंत में अपने ही किए का जवाब मिल जाता है और उन्होंने ये भूमिका बहुत अच्छे ढंग से निभाई है। अज़ीज़ के दोस्त की भूमिका में दलाल, कैथलिक नर्स की भूमिका में सुप्रिया पाठक कपूर और नाना के दोस्त बाला की भूमिका में डॉ मोहन आगाशे ऐसी कुछ अच्छी सहायक भूमिकाएं भी यहाँ देखने मिलती हैं।
तूफ़ान में गली बॉय (२०१९) की झलकियां नज़र आती हैं। वह फ़िल्म भी फरहान अख़्तर द्वारा सह-निर्मित थी और मौर्य द्वारा संवाद तथा जावेद अख़्तर द्वारा गाने लिखे गए थे। सिनेमैटोग्राफर जय ओझा ने दोनों फ़िल्मों में उपेक्षित प्रतिभा को शूट किया है। बस यहाँ रैप की जगह बॉक्सिंग का अंतर है।
तूफ़ान देखते हुए हमें सुलतान (२०१६), मुक्काबाज़ (२०१८) और भाग मिल्खा भाग (२०१३) जैसी फ़िल्मों की याद आती है। भाग मिल्खा भाग में मेहरा-फरहान अख़्तर जोड़ी ने काम किया था। इन सभी फ़िल्मों में खिलाड़ियों को हीरो के रूप में दर्शाया गया है।
किसी के उभरने और पतन की कहानी भले ही प्रेरक हो सकती है, पर इसके अंतिम स्वरुप में कुछ तो छूटा हुआ लगता है। तूफ़ान एक ईमानदार कोशिश के बावजूद बहुत कुछ कहने की कोशिश में अज़ीज़ अली की कहानी को क्लिष्ट बना देती है।
तूफ़ान अमेज़ॉन प्राइम पर उपलब्ध है।
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