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Review Hindi

स्ट्रीट डान्सर ३डी रिव्ह्यु – डान्स के करतब दर्शाने के लिए १५० मिनिट की फ़िल्म

Release Date: 24 Jan 2020 / Rated: U/A / 02hr 24min

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  • Direction:
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Keyur Seta

वरुण धवन और श्रद्धा कपूर अभिनीत स्ट्रीट डान्सर ३डी डान्स दृश्यों के बगैर महज़ एक शॉर्ट फ़िल्म बन कर रह जाती।

रेमो डिसूज़ा की इस फ़िल्म के पूर्वार्ध के ज़्यादातर समय में यही ठीक से पता नहीं चल पाता की ये फ़िल्म क्या कहना चाह रही है। लन्दन में एक दूसरे के विरुद्ध लड़ते रहते भारत और पाकिस्तान के दो कैम्प्स हैं, जिनका नेतृत्व सहेज (वरुण धवन) और इनायत (श्रद्धा कपूर) क्रमशः कर रहे हैं। भारत-पाकिस्तान की क्रिकेट मैच देखते हुए भी वे स्कूली बच्चों की तरह लड़ते हैं। घोषणाएं देते हुए चिल्लाना और खाने-पिने की सामग्री एक दूसरे पर फेंकना, ऐसी हरकते भी उनके लिए आम हो जाती हैं। अगर दोनों टीमें ये सब देख लें तो शायद क्रिकेट खेलना ही बंद कर दें।

इन सब के बीच कहानी को ढूंढना पड़ता है। सहेज अपने बड़े भाई (पुनीत पाठक) के साथ लन्दन में रहता है। पंजाब से स्थलांतरित हुआ ये परिवार सिर्फ़ डान्स क्लासेस चलाकर लन्दन के पॉश इलाके में सभी सुविधाओं के साथ रह रहा है।

ग्राउंड ज़ीरो नामक एक डान्स प्रतियोगिता में पाठक के किरदार को चोट लगती है और उसे बैसाखी का सहारा लेना पड़ता है। इसलिए सहेज ज़िम्मेदारी उठाता है के उसके भाई के लिए उनका ग्रुप ये प्रतियोगिता जीत ले। उनके डान्स ग्रुप की इनायत के पाकिस्तानी डान्स ग्रुप के साथ हमेशा टशन होती रहती है। पब का मालिक (प्रभु देवा) उन दोनों के बीच सुलह कराने का प्रयास करता है, पर उसका कोई फायदा नहीं होता।

जिस फ़िल्म की कहानी डान्स प्रतियोगिता पर आधारित हो, उस में कई सारे डान्स देखने मिलेंगे ये लाज़मी है। पर एबीसीडी (२०१३) और एबीसीडी २ (२०१५) के बिलकुल विपरीत डिसूज़ा यहाँ १५० मिनिट की फ़िल्म में डान्स हम पर थोपते जाते हैं। यहाँ डान्स का ओवरडोज़ है ऐसा कहना गलत नहीं होगा। इन डान्स दृश्यों के बगैर शायद ये फ़िल्म शॉर्ट फ़िल्म बनकर रह जाती। दृश्यांकन में इसकी भव्यता नज़र आ रही है, पर क्या फ़िल्म में बस इन्ही चीजों की आवश्यकता होती हैं?

डान्स के नाम पर कई एक्रोबेटिक करतब दिखाये जाते हैं। इतने के ऐसा लगता है के ये दोबारा दिखाए जा रहे हैं। शीर्षक में ३डी का प्रयोजन भी सफल नहीं हुआ है। बस यहाँ वहाँ कुछ ३डी इफेक्ट दिखता है जब किरदार कुछ चीज़ें फेंकते हैं।

'मुकाबला' गाने को छोड़ कर संगीत में भी निराशा ही हाथ लगती है। १९९४ के कधालन (हिंदी में हम से है मुकाबला) फ़िल्म के प्रभु देवा और नगमा के लोकप्रिय गाने को यहाँ रीमिक्स कर पेश किया गया है।

अभिनय के मामले में ऐसा लगता है जैसे कलाकार डान्स को इतना गंभीरता से ले रहे थे के अभिनय को वे भूल ही गए। वरुण धवन और श्रद्धा कपूर एकसाथ अच्छे लगते हैं और डान्स में उन्होंने अच्छा प्रदर्शन किया है, पर वे शायद और अधिक अच्छा कर सकते थे। उनके किरदार को गहराई से न दिखाना भी एक कमज़ोरी है। नोरा फ़तेहि खुद ही का किरदार निभाते हुए नज़र आती हैं।

अपारशक्ति खुराणा और कुछ हद तक पुनीत पाठक यहाँ गंभीरता से अच्छा अभिनय करते दिखते हैं। प्रभु देवा की डांसिंग पर कोई सवाल ही खड़ा नहीं होता, पर उनकी हिंदी पर काफ़ी सवाल खड़े होते हैं।

स्ट्रीट डान्सर ३डी इलीगल माइग्रेशन का मुद्दा भी उठता है, पर वो अनजाने में और मज़ेदार तरीकेसे उठाया गया है। पंजाब से कुछ लोग लन्दन में काम करने के लिए गैरकानूनी ढंग से आने की कोशिश में हैं। पर जो उनका काम करके देगा उसे हर व्यक्ति ४० लाख रुपये देने के लिए तैयार है। अगर आपके पास पहले ही इतना पैसा है, तो गैरकानूनी ढंग से लन्दन में रह कर जोखिम क्यों उठानी है?

ग्राउंड ज़ीरो इस प्रतियोगिता पर भी कुछ सवाल उपस्थित होते हैं। ये एक अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता है, पर इसके खिलाडी बीच में ही टीम बदल देते हैं। एक और दृश्य में कोई अचानक संगीत बंद कर देता है, जब कोई एक ग्रुप डान्स पेश कर रहा है और आयोजक उस ग्रुप की कोई भी गलती ना होने के बावजूद प्रतियोगिता से बाहर कर देता है। ऊपर से वो कहता है, "ये मेरी कॉम्पिटिशन है, यहाँ मेरे नियम चलेंगे।" क्या इस तरह अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताएं चलायी जाती हैं?

 

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