Sonal Pandya
मुम्बई, 21 Feb 2020 21:11 IST
दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे (१९९५) के कई संदर्भों के साथ हितेश केवल्य अपनी पहली निर्देशकीय फ़िल्म द्वारा हिंदी फ़िल्मों की लव स्टोरीज़ की तरफ देखने का नज़रिया बदलना चाह रहे हैं। इसमें वे काफ़ी हद तक सफल भी रहे हैं।
अमन (जितेंद्र कुमार) और कार्तिक (आयुष्यमान खुराणा) एक दूसरे से प्यार करते हैं। दिल्ली में रहते इन दोनों को अपनी दोस्त (भूमि पेडनेकर, मेहमान भूमिका में) को भागने में मदद करने के बाद मजबूरन कुछ दिनों तक छिपना पड़ता है। कार्तिक का सुझाव है की वे अमन के घर इलाहाबाद में जायें। अमन की चचेरी बहन गॉगल (मानवी गागरू) की शादी है। इसलिए अमन दुविधा में है, क्योंकि वो नहीं चाहता के उन दोनों के रिश्ते की वजह से वहाँ कोई बखेड़ा हो।
पर कार्तिक उसे मना लेता है और दोनों इलाहाबाद के लिए ०३७७ ट्रेन पकड़ते हैं, त्रिपाठी परिवार के साथ शादी में शरीक होने। ट्रेन का नंबर धारा ३७७ को ध्यान में रखते हुए बड़ी होशियारी से रखा गया है। त्रिपाठी परिवार के प्रमुख शंकर त्रिपाठी (गजराज राव) अपने बेटे को कार्तिक के साथ चुम्बन लेते हुए देख लेते हैं और उनके पैरो तले ज़मीन खिसक जाती है। शंकर त्रिपाठी एक कृषि वैज्ञानिक हैं जिन्होंने काली गोबी का प्रयोग किया है। अपने बेटे को कार्तिक से अलग करने के लिए वे अमन को समझाता हैं के वो गे नहीं है।
मगर कार्तिक शंकर त्रिपाठी की होमोफोबिया का सामना करने और समलैंगिक संबंधों के बारे में उनकी गलतफहमियों को दूर करने हमेशा सामने आ जाता है। भारतीय शादी की पार्श्वभूमि में इस रोमैंटिक कॉमेडी को रचा गया है और धीरे धीरे लव स्टोरीज़ की तरफ देखने के हमारे नज़रिये को बदलने में ये फ़िल्म मदद करती है। दीवार (१९७५), शोले (१९७५) से लेकर दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे (१९९५) तक अलग अलग फ़िल्मों के सन्दर्भ यहाँ दिए गए हैं।
शंकर को यहाँ अमरीश पूरी के किरदार की तरह दर्शाया गया है, और कार्तिक शाहरुख़ ख़ाँ के राज की तरह एक एक करके त्रिपाठी परिवार का मन बदलने में लगा है। फ़िल्म का उत्कर्ष भी कई परिचित दृश्यों की तरह आता है, जब अंततः ये प्रेमी जोड़ी मिल जाती है। निर्देशक हितेश केवल्य ने इस समलैंगिक प्रेम कहानी को एक साधारण लव स्टोरी की भांति दर्शाया है, जो भारतीय फ़िल्मों में नयापन लेकर आया है।
जब अमन अपने परिवार के सामने कार्तिक के प्रति अपने प्यार को ज़ाहिर करता है तो शंकर उसे ये समझाने में लग जाते हैं के ये गलत है। पत्नी सुनैना (नीना गुप्ता) और भाई चमन (मनुऋषि चड्ढा) के द्वारा वे अमन को पडोसी कुसुम (पंखुरी अवस्थी) के साथ शादी करने के लिए मनाने में लगाते हैं। इस तरह शुरू होती है अमन और कार्तिक की जद्दोजहत त्रिपाठी परिवार को अपने प्यार के बारे में समझाने और मनाने की।
केवल्य ने शुभ मंगल सावधान (२०१७) का स्क्रीनप्ले और संवाद लिखे थे। यहाँ उन्होंने कई मज़ेदार प्रसंग और किरदार रचे हैं जिनकी पार्श्वभूमि भी उतनी ही मज़ेदार रखी गयी है। अमन के चाचा चमन और उनकी पत्नी चंपा (सुनीता राजवर) की अपनी बेटी गॉगल उर्फ़ रजिनी की शादी की जद्दोजहद, एक अलग फ़िल्म हो सकती है। फ़िल्म के दरमियान उनके किरदार में भी कुछ चीज़ों की समझ आती रहती है।
पर यहाँ मुख्य किरदार अमन और कार्तिक हैं, जो एक दूसरे से बहुत प्यार करते हैं। कार्तिक बेख़ौफ़ है और अपने लैंगिकता को लेकर उसमे कोई हिचक नहीं, पर अमन अपने परिवार के दबाव से बाहर नहीं निकल पाया है। उसे भावनिक बनाकर कुसुम के साथ शादी करने के लिए राज़ी किया जाता है, वो भी लोगों को बताने के लिए, ताकि 'लोग क्या कहेंगे' इस बीमारी से बचा जाये।
आयुष्यमान खुराणा और जितेंद्र कुमार, जिन्हें यहाँ जीतू के नाम से क्रेडिट दिया गया है, दोनों के बीच की केमिस्ट्री अच्छी है। दोनों के प्यार के कुछ दृश्य भी फ़िल्म में हैं, जैसे के बाइक पर बैठे दोनों एक दूसरे से बिलगे हुए हैं, जैसे की आम जोड़ी हमें नज़र आती है।
पूरे देश में इन रिश्तों को साधारण रूप से देखने के संदेश की ज़िम्मेदारी भी फ़िल्म ने निभाई है। इसी लिए कुछ दृश्य हैं जिनमे गे होना कोई बीमारी नहीं, ये बताया गया है। एक जगह अमन बताता है, "मैं गे हूँ और ये मेरा प्रॉब्लेम नहीं है।" कार्तिक भी त्रिपाठी परिवार से कहता है, "माय सेक्स्युअलिटी इज़ माय सेक्स्युअलिटी, नन ऑफ़ यूअर सेक्स्युअलिटी।" ऐसे दृश्य निश्चित ही एक साहसिक प्रयोग है।
शुभ मंगल ज़्यादा सावधान में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए ऐतिहासिक धारा ३७७ के नतीजे का भी इस्तेमाल किया गया है। इस नतीजे के पहले के दिनों में ये कहानी स्थित है। इस निर्णय द्वारा समलैंगिक संबंध कोई अपराध नहीं रहा।
उत्तरार्ध में कॉमेडी धीरे धीरे कम होती है और किरदारों के आपसी मनमुटाव इसे उलझाते हैं। दर्शकों को एक साथ कई चीज़ें दिखाई जाती हैं, पर जब अमन और कार्तिक पर फिर से कहानी केंद्रित होती है, तो फ़िल्म अपने लक्ष्य को गांठती है।
जीतू ने अमन त्रिपाठी के रूप में सजग रूप से काम किया है। अमन पर सभी की उम्मीदें लगी हुई हैं और उसके दबाव को उन्होंने काफ़ी संजीदगी से दर्शाया है। खुराणा फिर एक बार अपने अच्छे फॉर्म को यहाँ भी दर्शाते हैं। अपनी फ़िल्मों द्वारा खास रूप में संदेश देने के लिए वे अब जाने जाते हैं, जैसे के उनकी पिछली फ़िल्म ड्रीम गर्ल (२०१९) में भी देखा गया था। हिंदी फ़िल्मों के हीरो की इमेज में उनके पौरुष को वे जिस नज़ाकत से ढाल देते हैं, वो कमाल है।
बधाई हो (२०१८) की जोड़ी गजराज राव और नीना गुप्ता यहाँ भी अमन के माता-पिता के रूप में अपनी छाप छोड़ते हैं, हालांकि यहाँ उनका प्रभाव पहली फ़िल्म से थोड़ा कम है। मनुऋषि चड्ढा चमन चाचा के रूप में प्रभावी हैं, जिस पर हमेशा तोहमते लगती हैं और अंत में जिसे अपनी अहमियत बताने का मौका मिलता है। गागरू का किरदार मज़ेदार है, पर इस किरदार को और गहराई मिलनी चाहिए थी।
अब समय आ चूका है के मुख्य धारा की हिंदी फ़िल्मों में दो पुरुषों की लव स्टोरी दर्शायी जाए। प्यार तो आखिर प्यार होता है, यही संदेश शुभ मंगल ज़्यादा सावधान के माध्यम से दिया गया है।
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