Suyog Zore
मुम्बई, 16 Oct 2021 6:30 IST
सनक अपने शैली की पुरानी यादगार फ़िल्मों को दोहराती नाकाम कोशिश है। एक गंभीर थ्रिलर बनाने का ये मौका ज़ाया हुआ है, बस यही इस फ़िल्म के बारे में कहा जा सकता है।
अगर मेरे बस में होता तो मैं इस फ़िल्म की समीक्षा में बस इतना ही लिखता, 'यह फ़िल्म समीक्षा के लायक नहीं है।' दुर्भाग्यवश ये मेरे हाथ में नहीं है। तो ये रहा मेरा रिव्ह्यु — सनक ब्रूस विलिस की डाय हार्ड (१९८८) की भयकंर नक़ल है।
विवान (विद्युत जमवाल) एक एमएमए (मिक्स्ड मार्शल आर्ट्स) फाइटर रह चूका है। उसकी बीवी अंशिका (रुक्मिणी मैत्रा) को दिल की बीमारी है और उसे अस्पताल में भर्ती किया गया है। उसके सफल ऑपरेशन के बाद अब उसे अस्पताल से छुट्टी मिल रही है। उसी दिन साजु (चन्दन रॉय सन्याल) अपनी टीम के साथ अस्पताल में आता है। उसके पास ऑटोमैटिक हथियार हैं। वो मरीज़ो को बंधक बना लेता है और सभी बाहर जाते रास्तों पर डेटोनेटर लगा देता है। वे नेटवर्क जैमर भी लगा देते हैं, ताकि कोई किसी से संपर्क ना कर सके।
अब विवान का मिशन है अपनी पत्नी को बचाना। बाकी फ़िल्म नौ और पहले मंज़िल पर आना-जाना, हमलावरों को बंदूकों और हाथ-पैरों की फाइट से मारना इत्यादि दिखाते हुए ख़त्म होती है।
फ़िल्म के लेखक ने स्क्रीनप्ले के लिए जितनी मेहनत नहीं ली होगी, उससे ज़्यादा मेहनत मैं अब तक इस समीक्षा में कर चुका हूँ। सब कुछ इतना साधारण है के इसमें नक़ल दिखना स्वाभाविक लगता है। ऐसी फ़िल्मों में कोई वास्तविकता की अपेक्षा भी नहीं करेगा। अगर ऐसा हो तो हमारा हीरो पाँच मिनट में मारा जाएगा। अगर उत्कण्ठावर्धक क्षण और ज़बरदस्त एक्शन हो तो यहाँ तर्क की अपेक्षा भी नहीं की जाएगी। पर बजाय उसके, हमें डाय हार्ड, हार्ड बॉइल्ड (१९९२) और पिछले दशक की पसंदीदा एक्शन फ़िल्म रेड (२०११) की भ्रष्ट नक़ल देखने मिलती है।
निर्देशक कनिष्क वर्मा और लेखक आशीष पि वर्मा ने कुछ दृश्यों से इन पुरानी फ़िल्मों को याद करने की कोशिश भी की है। जैसे के जब विवान बच्चों को बचा रहा है, ये दृश्य हार्ड बॉइल्ड से प्रेरित है। पर साधारण निर्देशन और अभिनय के कारण यह भ्रष्ट नक़ल ही ज़्यादा लगती है।
जयति (नेहा धूपिया) पुलिस अफसर है, जो अस्पताल के बाहर का मोर्चा संभाले है और आतंवादियों से बातचीत कर रही है। एक छोटा लड़का है जो अंदर फसा है, लेकिन वीडियो गेम्स के कारण उसे बंदूकों और बम के बारे में इतनी छोटी उम्र में भी बहुत जानकरी है। एक सेक्युरिटी गार्ड भी है, जो जमवाल की तारीफ करते नहीं थकता।
एक्शन कोरिओग्राफी अच्छी है, पर उसमे भावनाओं की कमी खलती है। ऐसा लगता है जैसे दो लोग अपने करतब दिखा रहे हैं, हालाँकि लगना यूँ चाहिए के दो लोग एक दूसरे को मारना चाह रहे हैं। रेड जैसी फ़िल्म में भी काफी क्लिष्ट एक्शन कोरिओग्राफी थी, पर वहाँ भी ऐसा नहीं लगता है के कोई अपना हुनर दिखा रहा है। ऐसा लगता है के मुश्किल परिस्थिति में वे बचने की कोशिश कर रहे हैं। दुश्मन उनको खोज रहा है, जिसका खौफ उनमे दिखाई देता है। डर और सुरक्षित रहने के भाव उन दृश्यों में सहज देखे जा सकते हैं।
यहाँ कोई भाव नज़र नहीं आता और निर्देशक डर का माहौल बनाने से चूक गए हैं। जब हमारे हीरो के पीछे बंदूकधारी आतंकवादी लगे हुए होते हैं, तब भी किसी भी तरह की गंभीरता स्क्रीन पर दिखाई नहीं देती।
जमवाल एक्शन दृश्यों में कमाल हैं, खास कर जहाँ भिन्न वस्तुओं का इस्तेमाल किया गया है। पर बस उतनाही है। जब भावनाए दर्शाने का समय आता है, तो उनकी नैया डामाडोल हो जाती है।
रॉय सन्याल साजु की भूमिका में जाया किए गए हैं। वे बस दिखने के लिए खूंखार दिखाए गए हैं। उनके किरदार को और खूबी से निभाया जा सकता था, पर लेखक ने उन्हें एक आम विलन की तरह दर्शाया है, जो बेवजह आवाज़ बढ़ा कर बोलते रहता है।
धूपिया के किरदार के बारे में भी वही कहा जा सकता है। विवान के साथ फोन पर बात करने और अपने अधिकारियों को आदेश देने के अलावा उन्हें ज़्यादा कोई काम नहीं है।
सनक ने एक अच्छे थ्रिलर के मौके को गवाया है। अगर आप जमवाल के एक्शन के दीवाने हैं, तो आप ये फ़िल्म देख सकते हैं। बाकियों के लिए ये घोर निराशा है।
सनक डिज़्नी+ हॉटस्टार पर उपलब्ध है।
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