Keyur Seta
मुम्बई, 21 Jan 2020 16:38 IST
पूरे फ़िल्म में नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी का जादू सर चढ़कर बोल रहा है।
जब किसी फ़िल्म का शीर्षक रोम रोम में हो, तो कोई भी ये सोच सकता है के कोई किदरदार इटली के शहर में घूम रहा है। फिर आप पोस्टर में देखते हैं के नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी का किरदार रोम में घूम रहा है। तब ये पक्का ही हो जाता है के ये रोम की कोई ट्रैवल स्टोरी होगी।
रोम रोम में ये कहानी है राज (सिद्दीकी) की जो दिल्ली के किसी प्राइवेट फर्म में काम करता है और अपनी छोटी बहन रीना (तनिष्ठा चैटर्जी) और माता-पिता के साथ रहता है। वो जल्द ही उसकी मंगेतर (ईशा तलवार) से शादी करनेवाला है। राज के माता-पिता चाहते हैं के वो जल्द शादी कर ले क्योंकि वो अब ३७ वर्ष का हो चूका है।
इसी बीच रीना लापता हो जाती है और परिवार सोचता है के वो आगरा गयी है। पर राज को पता चलता है के वो रोम में है। अपनी बहन के लिए परेशान राज माँ-बाप को बिना बताये रोम के लिए निकल पड़ता है। अपनी बहन को खोजने का उसका संघर्ष ही इस फ़िल्म की कहानी है।
राज का रोम में घूमना ही ज़्यादातर फ़िल्म में दर्शाया गया हो, पर ये कोई स्लाइस ऑफ़ लाइफ फ़िल्म नहीं है जिसमे हलके फुल्के क्षणों में ज़िंदगी दर्शायी जाती है। बल्कि रोम रोम में बिलकुल ही अनपेक्षित रूप से सामने आती है।
राज और उसके पिता का पुरुषसत्ताक व्यवहार शुरुवात में ही स्पष्ट हो जाता है। रीना का विशिष्ट तरह के कपडे पहनना राज को पसंद नहीं। जब रीना अपने पुरुष सहयोगी के साथ ट्रेनिंग प्रोग्राम में जाती है, तो राज अस्वस्थ होता है। आर्थिक समस्या के चलते राज के पिता ने रीना को अधिक शिक्षा लेने से रोका, क्योंकि वो सोचते हैं के लड़कियों को एक दिन तो शादी ही करनी है। इस तरह के कुछ स्वभाव वैशिष्टयों द्वारा दोनों की मानसिकता दर्शायी गयी है।
सिनेस्तान डॉट कॉम से हुई बातचीत में चैटर्जी ने कहा था के उनकी स्त्री प्रधान फ़िल्म के लिए उन्हें एक पुरुष कलाकार चाहिए था। नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी को चुनकर उन्होंने एक उचित निर्णय लिया। उनका अभिनय फिर एक बार बढ़ चढ़ कर बोल रहा है। गंभीर संवादों में भी सहज ही व्यंग के क्षण भरने का हुनर उनमें है। दूसरी ओर चैटर्जी ने भी अपने सक्षम अभिनय से बतौर अभिनेत्री अपनी क्षमता दर्शायी है।
जब महिलाओं के प्रति हो रहे इस गैर व्यवहार के दृश्य एक के बाद एक आने लगते हैं, तब फ़िल्म के महिला सबलीकरण के विषय के बारे में हम गंभीर रूप से सोचने लगते हैं।
फ़िल्म भले ही महिला केन्द्री हो, पर फ़िल्म अधिक गूढ़ और सायकोलॉजिकल थ्रिलर शैली में चली जाती है। इस तरह के शैली का बदलाव आपको बिना पता चले होता है, और वही इसकी ताकत है। फ़िल्म का कथासूत्र भी कई सवाल खड़े करता है और आपको उलझन में डालता है, पर ये भी उम्मीद जगाता है के आपको आगे इनके जवाब ज़रूर मिलेंगे।
दृश्यों की दर्शाने की तकनीक और सुन्दर जगहों की शूटिंग आपका मन लुभाती है। एक गतिमान धुन भी इस्तेमाल की गयी है, जो आपके उत्साह को और बढ़ाती है।
रहस्य है तो उसे सुलझाना भी ज़रूरी है। यहीं रोम रोम में आपकी निराशा करता है। इतने गंभीर गूढ़ और थ्रिलिंग अनुभव से ले जाने के बाद फ़िल्म अचानक ख़त्म हो जाती है, कुछ सवालों के जवाब दिए बिना। फ़िल्म ख़तम हो चुकी है इस पर विश्वास करना भी मुश्किल हो जाता है। इसी लिए जो फ़िल्म के अच्छे गुण हैं वे भी अधिक महत्त्व नहीं रखते।
ये तो निश्चित है के निर्देशक ने जानबूझ कर फ़िल्म की ऐसी ओपन एंडिंग रखी है। इसमें कोई बुराई भी नहीं, पर ओपन एंडिंग में भी विशिष्ट रूप में एक समापन होना चाहिए, जो यहाँ नज़र नहीं आता। फ़िल्म में दर्शकों के सहारे कई चीज़ें छोड़ दी गयी हैं।
इस वजह से रोम रोम में आश्वासक थ्रिलर की जगह एक अच्छा तकनिकी अनुभव बन कर रह जाता है।
रोम रोम में मामी मुम्बई फ़िल्म फेस्टिवल में २२ अक्टूबर २०१९ को दर्शायी गयी थी और १९ जनवरी २०२० को राजस्थान इंटरनैशनल फ़िल्म फेस्टिवल, जयपुर, में दर्शायी गयी।
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