Sonal Pandya
मुम्बई, 24 Jan 2020 8:30 IST
अश्विनी अय्यर तिवारी की भावुक, हंसाती और दिल को छूनेवाली ये फ़िल्म एक माँ की अपने खेल करिअर में वापसी की संजीदा कहानी है।
एक अफ्रीकन कहावत के अनुसार एक बच्चे के पालनपोषन के लिए पूरे गॉंव को जुट जाना पड़ता है, पर अश्विनी अय्यर तिवारी की इस फ़िल्म में एक माँ को उसके कब्बडी करिअर में वापसी कर देश के लिए खेलने में एक गॉंव को जुटना पड़ रहा है। अभिनेत्री कंगना रनौत इस फ़िल्म में एक माँ के रूप में स्वाभाविक और सहज अभिनय करती हैं, जो फिर एकबार खुद के लिए जीने की कोशिश कर रही है।
भोपाल, मध्य प्रदेश, में जया निगम (रनौत) अपनी रोज़ाना ज़िंदगी जी रही है। वो और उसका पति प्रशांत सचदेवा (जस्सी गिल) भारतीय रेल में काम कर रहे हैं। उनका बेटा आदि (यज्ञ भसीन) ७ साल का है। तीनो की ज़िंदगी हसी खुशी कट रही है, पर जया जो कबड्डी चैम्पियन रह चुकी है, उसे ज़िंदगी में कुछ छूटता हुआ लगते रहता है।
युवा कबड्डी खिलाड़ियों का उसे ना पहचानना, बॉस का उसे अपमानित करना और बेटे के स्पोर्ट्स डे पर उसके न आने से बेटे का उस पर नाराज़ होना, इन सब के परिणाम स्वरुप वो सोचने लगती है के उसने अपनी ज़िंदगी से समझौता कर के अपनी ख्वाहिशों को दबा दिया है, जब की वो आज कुछ और हो सकती थी।
जब आदि को पता चलता है के उसकी माँ एक खिलाडी थी, तो वो उसे फिर से फिट होकर वापसी करने के लिए उसके पीछे लगता है। वो जैसे तैसे तैयार होती है, धीरे धीरे वो फिट होती है और कबड्डी खेलने के लिए फिर से तैयार होती है। जया की दोस्त और पूर्व साथी खिलाडी मीनू (रिचा चड्ढा) उसे मार्गदर्शन करती है।
प्रशांत और आदि की मदद से जया फिर से खेलना शुरू करती है, जिसमे उसे उससे काफ़ी छोटी और फिट लड़कियों के साथ खेलना पड़ता है। उसके दिल में एक ही ख्वाहिश है के उसे भारत की ओर से खेलना है।
हालांकि जया की कहानी काल्पनिक है, पर उसका निजी संघर्ष और आखिर में उसकी जीत मेरी कॉम, सेरेना विलियम्स, पौला रैडक्लिफ और अब सानिया मिर्ज़ा, जिन्होंने हाल ही में ऑस्ट्रेलिया में जीत हासिल की, इन सबकी कहानी से मेल रखती है जिन्होंने माँ बनने के बावजूद अपने प्रोफेशनल खेल करिअर में नयी ऊंचाइया हासिल की।
पंगा में जया का सफर परिणामस्वरूप दर्शाया गया है। ३२ वर्ष की आयु में खुद को फिरसे अपने विरोधक और समर्थक दोनों के सामने सिद्ध करना काफ़ी मुश्किल होता है। अश्विनी अय्यर तिवारी और निखिल मल्होत्रा का स्क्रीनप्ले और सहायक रहे नितेश तिवारी ने छोटे छोटे क्षणों को कहानी में खूबसूरती से पिरोया है। हास्य व्यंग और भावनात्मकता का सहारा लेकर उन्होंने एक खूबसूरत कहानी दर्शायी है।
रिचा चड्ढा की मीनू आपका दिल जीत लेती है और उनके बिंदास संवाद निशाने पर लगते हैं। उनका किरदार सहायक भूमिका में है, पर उन्हें मेहमान कलाकार का क्रेडिट दिया गया है। बाल कलाकार यज्ञ भसीन ने अपने किरदार की समझदारी भी खूबी से दर्शायी है। अपने माँ की खेल में वापसी के लिए वो ही पहल करता है। जस्सी गिल ने एक अच्छे और सहायक पति की भूमिका में हिंदी फ़िल्मों में दमदार प्रवेश किया है। जया की माँ की छोटी भूमिका में नीना गुप्ता को भी कुछ प्यारे दृश्य मिले हैं।
जया की भूमिका में रनौत ने अपने किरदार को छोटी छोटी खूबियों के साथ निखारा है, कबड्डी में वापसी पर उनके गुस्से से अधिक उनके मूक दृश्य अधिक बोलते हैं। इस खेल को भी कई नज़रिये से दर्शाया गया है, जिम में प्रैक्टिस करने से लेकर अन्तरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं तक। जिन्हे इस खेल के बारे में कुछ भी जानकारी नहीं हैं, उन्हें भी यहाँ ये फ़िल्म बांधकर रखती है।
अश्विनी अय्यर तिवारी ने जया को बेहद स्वाभाविक ढंग से दर्शाया है। जया एक माँ होने के नाते अपनी ज़िम्मेदारी और मर्यादा के बारे में मीनू को बताती है, या फिर जब वो पति को कहती है के दूसरे शहर में खेलने का ऑफर वो नहीं स्वीकारना चाहती, ऐसे स्वाभाविक दृश्य निर्देशक ने प्रभावी रूप से दर्शाये हैं।
संचित बल्हारा और अंकित बल्हारा का पार्श्वसंगीत और शंकर-एहसान-लॉय का संगीत फ़िल्म की ऊर्जा बढ़ाते रहते हैं और इसके मूड को हमेशा बनाये रखते हैं। अंतिम दृश्य के क्षणों का खास उल्लेख होना चाहिए, जहाँ जया शंका, कुशंकाओं से घिरी है और वहीं उसके खेल की और भावनाओं की जीत भी दर्शायी जा रही है।
पंगा सिर्फ़ सपनो से बेधड़क भिड़ना नहीं है, बल्कि आगे बढ़कर जो कदम हम उठाते हैं उनके बारे में ये फ़िल्म है। ये हृदयस्पर्शी स्पोर्ट्स फ़िल्म आप का दिल जीत लेगी।
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