Sukhpreet Kahlon
मुम्बई, 02 Jun 2020 20:00 IST
विद्या बालन अभिनीत यह शॉर्ट फ़िल्म यूट्यूब पर वुई आर वन ग्लोबल फ़िल्म फेस्टिवल के अंतर्गत प्रदर्शित की गयी।
शान व्यास निर्देशित नटखट (२०२०) वुई आर वन ग्लोबल फ़िल्म फेस्टिवल के अंतर्गत यूट्यूब पर ऑनलाइन प्रदर्शित की गयी। फ़िल्म के शुरुवात से पहले व्यास ने वर्तमान परिस्थितियों में इस फ़िल्म के ऑनलाइन प्रदर्शन पर अपना मत व्यक्त किया तथा ये आशा व्यक्त की के जल्द ही दर्शक सिनेमा हॉल में फ़िल्म देखने आ सकेंगे।
सोनू एक मासूम सा ७ वर्षीय बच्चा है जो नटखट है और इस तरह अकड़ रखता है जैसे के वो जंगल का राजा हो। वो मैदान में बड़े बच्चों का सूक्ष्म निरिक्षण करता है और उन जैसा बनने की आकांक्षा रखता है। वो उनका अनुकरण करने की कोशिश करता रहता है। उसके पारम्परिक घर में भी वो लिंग भेद देखता है। उसके दादा और चाचा मर्दानगी की तारीफ करते रहते हैं, उसके चलते वे हिंसा को नज़रअंदाज़ करते रहते हैं और औरतों को उनकी जगह दिखाने में विश्वास रखते हैं।
सोनू की माँ (विद्या बालन) देखती है के उसका बेटा इस झूठी मर्दानगी से प्रभावित होते जा रहा है। वो बेटे को रात को एक कहानी सुनाने का निर्णय लेती है जिसमे वो क्रूरता और उसका इन झूठे मर्दों पर और साथ ही उनके आस पास के लोगों पर होनेवाले प्रभाव को बताती है। उसे उम्मीद है के उसका बेटा बड़ा होकर उसके पिता से अलग होगा।
फ़िल्म काफ़ी सटीकता से छोटे बच्चों पर होनेवाले प्रभाव को दर्शाती है। बड़े बच्चें बिना कुछ समझे कैसे गलत चीज़ें करते रहते हैं, या फिर उनके व्यवहार के दुष्परिणाम को न जानते हुए वे कैसे बर्ताव करते रहते हैं, इस पर भी प्रकाश डाला गया है। इसमें माता-पिता की और समाज की ज़िम्मेदारियों पर कटाक्ष किया गया है, क्योंकि बच्चों का दिमाग किसी स्पंज की तरह होता है, जो सही-गलत में फरक किये बगैर ही चीजों को सोख लेता है। बच्चे के दादा हमेशा 'लड़के तो लड़के होते हैं' कहने में झिझकते नहीं, और उन्हें ख़ुशी महसूस होती है जब सात वर्ष का लड़का औरत को भगाने की बात कर रहा होता है।
पर इससे भी अधिक फ़िल्म सत्ता पर भाष्य करती है। अनुकंपा हर्ष और व्यास द्वारा लिखित इस शॉर्ट फ़िल्म में दिखाया गया है के कैसे छोटी उम्र में ही लड़कों को महिलाओं पर उनकी सत्ता चलती है इसकी शिक्षा मिलते रहती है। पुरुषसत्ताक समाज ने हिंसा को बढावा देने वाली भाषा के प्रयोग को आम बना दिया है, जिसके चलते औरत को तुच्च समझा जाने लगा है।
समाज, धर्म और लोकप्रिय मनोरंजन के माध्यम जहाँ हिंसा को बढ़ाचढ़ा कर दिखाते हैं, उन पर ये फ़िल्म तीखा कटाक्ष है। फ़िल्म का सुखद अंत उसके भयंकर वास्तव को देख कुछ ठीक नहीं लगता, पर निर्देशक अपनी बात कहने में सफल जरूर हुए हैं।
फ़िल्म का निर्माण विद्या बालन और रॉनी स्क्रूवाला ने किया है। विद्या की बतौर निर्माती पहली पेशकश है। वे इस फ़िल्म की मज़बूत कड़ी हैं। उनका किरदार अपने बेटे को चीजों को दूसरी नज़र से देखने के लिए तैयार करती है और उसे एक दूसरे दुनिया की शिक्षा देती है। पर सोनू की मासूमियत और नटखट होना काफ़ी प्रभावी है। उसके बालसुलभ मन में उठ रहे भावनाओं के उलझन को बड़े ही सुन्दर रूप से दर्शाया गया है। सोनू की भूमिका सानिका पटेल नामक लड़की ने निभाई है ये भी एक सुखद आश्चर्य है।
फ़िल्म को मामी फेस्टिवल की ओर से वुई आर वन ग्लोबल फ़िल्म फेस्टिवल के अंतर्गत यूट्यूब पर उपलब्ध किया गया।
Related topics
MAMI Mumbai Film Festival YouTubeYou might also like
Review Hindi
Jogi review: Diljit Dosanjh-starrer is more like a thriller revolving around 1984 riots
The Ali Abbas Zafar film takes you by surprise with the riot angle brought in much earlier in the...
Review Hindi
Matto Ki Saikil review: Prakash Jha leads this sentimental saga of socio-economic inequality
Written and directed by M Gani, the Hindi film is a patchy yet heartbreaking look at the bleak class...
Review Hindi
Jhini Bini Chadariya review: A moving lamentation for the holy city of Varanasi
Ritesh Sharma’s hard-hitting film lays bare the social fabric of the city and the growing...