Sukhpreet Kahlon
मुम्बई, 08 May 2020 17:06 IST
अक्षत वर्मा द्वारा निर्देशित यह शॉर्ट फ़िल्म प्रदर्शित होकर काफी दिन हो चुके हैं, पर महाभारत की यह हास्यानुकृति बेहद मज़ेदार और देखने लायक है।
हम सब घर पर बैठ कर बी आर चोपड़ा की महाभारत (१९८८) देख कर पुरानी यादों में खो रहें हैं, जो के दूरदर्शन पर फिर से दिखाई जा रही है। वहीं दूसरी ओर ये शॉर्ट फ़िल्म है जो के उपहासात्मक रूप से इस महाकाव्य को आधुनिक रूप में दर्शाती है।
निर्देशक अक्षत वर्मा को हम दिल्ली बेली (२०११) जैसी ब्लैक कॉमेडी के लेखक के रूप में जानते हैं। इस शॉर्ट फ़िल्म में अर्जुन कुंती के सामने द्रौपदी को स्वयंवर से जित कर ले आता है, उस विषय को दर्शाया है। कुंती बिना देखे अर्जुन से कहती है के उसने जो कुछ लाया है वो पांचों भाईयो में बांट दे।
फ़िल्म में जब कुंती (नीना गुप्ता) बिना कुछ सोचे अर्जुन (अमोल पाराशर) को कहती है के वो उसकी पत्नी (अदिति राव हैदरी) को भाइयों के साथ बांट ले, तो अर्जुन चिढ़ जाता है। पर कुंती अपनी बात पर कायम रहती है, "कह दिया सो कह दिया।"
अपनी माँ को ना समझा पाने पर अर्जुन अपने भाइयों को मनाने जाता है, ताकि माँ के नासमझी पर अंकुश लगा सके, क्योंकि द्रौपदी को वो स्वयंवर से अपने बलबूते पर जीत कर ले आया है। पर द्रौपदी को पाँच पतियों की कल्पना उतनी भी बुरी नहीं लगती। उसकी दोस्त भी उसे बताती है, "वे सभी हॉट हैं। पांचो।"
पांचो भाई, युधिष्ठिर (अक्षय ओबेरॉय), भीम (अरुणोदय सिंह), अर्जुन, नकुल (विवान शाह) और सहदेव (जिम सर्भ) इस स्पूफ में पौराणिक पात्रों की पैरोडी बना कर पेश किये गए हैं। नकुल और सहदेव को गे बताया गया है, तो युधिष्ठिर को स्मोकर, शराबी, जुआ खेलनेवाला बताया गया है जो के मूल पौराणिक किरदार के आदर्शवादी किरदार से विपरीत है। इस पूरे विषय पर द्रौपदी की सोच भी यहाँ बताई गयी है। ममाज़ बॉइज़ में दिवंगत रज़ाक खाँ भी नज़र आते हैं, जो के शकुनि की भूमिका में बेहतरीन लगते हैं।
ये तो निश्चित है के ये सिर्फ़ व्यंग के लिए बनाई गयी शॉर्ट फ़िल्म है, पर फिर भी मज़ेदार है। आज के समय में, जहाँ एक तरफ व्यंग की तरफ देखने का लोगों का नज़रिया तीखा हो चला है, ऐसे वक़्त महाभारत जैसे महाकाव्य का व्यंगात्मक हास्यानुकृति देख कर निश्चित ही सुखद आश्चर्य भी होता है। ममाज़ बॉइज़ यहाँ देखें।
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