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Review Hindi

केसरी रिव्ह्यु – बॉर्डर (१९९७) फ़िल्म का आज का वर्जन

Release Date: 21 Mar 2019 / Rated: U/A / 02hr 30min

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Shriram Iyengar

अनुराग सिंह ने आम जनता के लिए मनोरंजक फ़िल्म बनाने के उद्देश्य से सारागढ़ी युद्ध को दर्शाया है, पर यहाँ ऐतिहासिक तथ्यों को महत्त्व नहीं दिया गया है।

जिस तरह बॉर्डर फ़िल्म में सुनील शेट्टी या सनी देओल की एक्शन आपमें रोमांच भरती है, उस तरह का रोमांच अनुराग सिंह की केसरी में आपको अवश्य मिलेगा। अक्षय कुमार की केसरी देशभक्ति से भरपूर एक्शन ड्रामा है, जो इतिहास में खोई हुई एक घटना पर आधारित है।

अगर बॉर्डर (१९९७) फ़िल्म से इसकी तुलना की जा रही है, तो उसे नकारात्मक न समझिए। अनुराग सिंह की फ़िल्म मनोरंजक भी है और इसके दमदार संवाद लड़ने की ताकत भी देते हैं।

कहानी बड़ी सरल है। हवलदार ईशर सिंह (अक्षय कुमार) को अपने वरिष्ठ की बात न सुनने पर सारागढ़ी के किले की रखवाली करने के लिए भेजा जाता है। दुर्भाग्यवश जब वो इस किले को संभालने के लिए आता है, तभी पश्तून ओरकज़ई और पठान सैन्य दोनों मिलकर इस किले को हथियाने के इरादे से कूच करते हैं।

इससे ब्रिटिश नियंत्रित नार्थ वेस्ट फ़्रंटियर प्रॉविन्सेस को धक्का पहुंचता है। सारागढ़ी पर खड़े ये २१ भारतीय जवान इस युद्ध को जान की बाज़ी लगा कर लड़ते हैं, जिससे ये युद्ध इतिहास में अमर हो गया।

फ़िल्म मनोरंजक है, पर युद्ध के तरफ धीमी गति से बढ़ती है। फ़िल्म पूरी तरीकेसे ईशर सिंह के इर्द गिर्द घूमती है, जो जाबांज़ और ज़िद्दी है और अपनी मिट्टी के लिए लड़ना चाहता है।

अक्षय कुमार ने ईशर सिंह को संतुलित रूप से निभाया है। ईशर सिंह का टेढ़ा व्यंग पहले हिस्से में आपका मनोरंजन करता है और दूसरे हिस्से में ईशर सिंह उतना ही कठोर दीखता है। एक्शन दृश्य में अक्षय कमाल करेंगे इस बात से किसी को आशंका होने का प्रश्न ही नहीं उठता। पर उनके मरने के दृश्य को काफ़ी खिंचा गया है।

एक्शन दृश्यों को कमाल फ़िल्माया गया है। युद्ध से तपता वातावरण और उसका पार्श्वसंगीत आपको फ़िल्म में बांधे रखता है। युद्ध के दृश्यों का भव्य फिल्मांकन फ़िल्म को और भी बड़ा बनाता है।

फ़िल्म में भावुक क्षणों को भी खूबसूरती से पिरोया गया है। जवानों के बीच का अपनापन तथा उन्हें किसानो की धर्मनिरपेक्ष सेना के रूप में तबदील करने की परिचित लेकिन प्रभावी ट्रिक आपको फ़िल्म से जोड़े रखता है। समय के बढ़ते पार्श्वसंगीत से भी ये दृश्य और प्रभावी बनते हैं।

फ़िल्म में कुछ कमियां भी हैं। परिणीति चोपड़ा का किरदार ईशर सिंह की कहानी में कुछ खास नहीं जोड़ पाता। इस भूमिका के लिए जिस तरह से परिणीति को 'स्पेशल थैंक्स' का क्रेडिट दिया गया है, वो उचित है।

इस फ़िल्म की ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर तुलना करना शायद सही नहीं होगा। आजकल जैसे ज़्यादातर फ़िल्मों में शुरुवात में ही सूचना दी जाती है, उसी प्रकार यहाँ भी सूचना दी गयी है के 'फ़िल्म में नाट्यमयता को बढ़ाने के लिए काल्पनिक तत्त्व जोड़े गए हैं'।

पर फ़िल्म में देशभक्ति को इतना बढ़ा चढ़ा के दिखाया गया है कभी कभी उसे हज़म करना मुश्किल हो जाता है। एक जिहादी मुल्ला को विलन बनाया गया है, जो धर्म के नाम पर विद्रोहियों को उकसाता है। हालांकि नाट्यमयता को बढ़ाने के लिए ये सही हो, पर आज ये काफ़ी इस्तेमाल किया गया हथियार है। शायद आज के संदर्भ में उसे जोड़ने के लिए ऐसा किया गया हो। पर यहाँ बात इस लिए अलग है क्यूंकि यहाँ पठान ब्रिटिश के खिलाफ लड़ रहे थे, जो की अफगानिस्तान में ज़बरन घुसे थे।

फ़िल्म में देशभक्ति का ज्वाला फ़िल्म में फैले वी एफ एक्स के खून जितना ही फैला हुआ है। मुग़ल और अंग्रेज़ को एक बताते हुए आज़ादी की बात संवादों से करना ये एक लोकप्रिय धारणाओं के साथ जाने जैसा ही है। अपने समाज या कौम के प्रति सिखों के अविवादित साहस और निष्ठा को भी यहाँ दर्शाया गया है।

कमियों के बावजूद फ़िल्म जवानों के त्याग और बलिदान को उजागर करती है। फ़िल्म में उन महान वीरों के शौर्य को दर्शाना भले ही मुश्किल रहा हो, पर उनके साहस और वीरता पर ये फ़िल्म प्रकाश डालती है। जैसे कवी टेनिसन ने लिखा था, 'देयर्स नॉट टू क़्वेश्चन व्हाय / देयर्स बट टू डू एंड डाय।', मतलब सवाल करना उनका काम न था, उनको तो बस लड़ मरना था। इसी वजह से इन २१ सिख सैनिकों को इतिहास में इतना सम्मान मिला और रानी विक्टोरिया ने भी उनकी वीरता की सराहना की।

सारागढ़ी के युद्ध की तुलना थर्मोपायली या बालाक्लावा के युद्ध से की जाती है, जो इस युद्ध के पूर्व हुए थे। कमियों के बावजूद केसरी काफ़ी मनोरंजक है जो आम जनता को रोमांच का जबरदस्त अनुभव देती है।

फ़िल्म में जितना रोमांच है, उतने ही तथ्यों की कमी भी। पर जैसे के हमारे नेता बताते हैं, के अगर आप चाहते हैं के जनता इतिहास को याद रखे तो आपको उसे रोमांचकता के साथ बताना होगा। जिन्हें तथ्यों को जानना हैं वे किताब पढ़ेंगे।

 

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