Keyur Seta
मुम्बई, 24 Jul 2021 11:16 IST
मीज़ान जाफरी और प्रणिता सुभाष द्वारा अभिनीत इस फ़िल्म की सबसे बुरी बात ये है के यह २ घंटे ३६ मिनिट लंबी है।
हंगामा (२००३) प्रियदर्शन की हिंदी में बेहतर फ़िल्मों में से एक मानी जाती है। उनकी हिंदी कॉमेडी फ़िल्मों में हेरा फेरी (२०००) के बाद इस फ़िल्म का ज़िक्र होता है। पर हिंदी फ़िल्मों को ख़राब सिक़्वल की आदत है और हंगामा २ इसी को दोबारा सिद्ध करती है।
हंगामा उलझनों में उलझी कॉमेडी थी। हंगामा २ में इसके साथ गूढ़ता भी जोड़ी गयी है। आकाश (मीज़ान जाफरी) अपने पिता (आशुतोष राणा), बहन और बड़े भाई के चार शरारती बच्चों के साथ हिमाचल प्रदेश के एक छोटे शहर में रहता है। उसके पिता ने अपने करीबी दोस्त बजाज (मनोज जोशी) के बेटी के साथ उसकी शादी तय कर दी है।
पर मंगनी के कुछ दिन पहले आकाश की कॉलेज की दोस्त वाणी (प्रणिता सुभाष) वहाँ नन्हे बच्चे के साथ आ जाती है और आकाश को उस बच्चे का बाप बताती है। आकाश हैरत में पड़ जाता है। वो मानता है के वो वाणी के साथ रिश्ते में था, लेकिन बच्चे का बाप होने से इन्कार करता है। पर आकाश के पिता अपने बेटे को दोषी मानते हैं। पर बजाज और बेटे की मंगेतर से ये सारी बात छुपाई जाती है।
आकाश उनकी फॅमिली फ्रेंड और साथी राधा (शिल्पा शेट्टी) से मदद लेता है। पर राधा का पति राधेश्याम तिवारी (परेश रावल) को शक है के राधा और आकाश का चक्कर चल रहा है।
आज की तारीख में ऐसी परिस्थिति में डीएनए टेस्ट एक आसान हल हो सकता है। ये टेस्ट वे करते भी हैं, पर उसके नतीजे को गंभीरता से नहीं लेते। क्यों? पता नहीं। आकाश के घरवाले वाणी की उनके घर की सदस्य की तरह देखभाल करते हैं और आकाश की आनेवाली मंगनी के बारे में उन्हें कोई चिंता नहीं दिखती। ऐसा क्यों है, इसका कोई स्पष्टीकरण नहीं।
हंगामा २ की कहानी ऐसी घटनाओं से भरपूर है जो ना हमारा मनोरंजन करती हैं और ना ही उन्हें मानने का कोई ठोस कारण देती हैं। जब आप ऊब चुके होते हैं, तभी आपको पता चलता है के प्री-क्लाइमैक्स और क्लाइमैक्स में आपको इससे भी बुरी परिस्थिति देखनी है। बच्चे का बाप कौन, ये गूढ़ बेहद कच्चा, मूर्खतापूर्ण और अविश्वासक है। हमें तो इस बात की हैरानी होने लगती है के प्रियदर्शन और उनकी टीम ऐसी कहानी के साथ आगे कैसे बढे।
हंगामा २ की एक और समस्या है इसके संवाद। ख़राब कॉमेडी फ़िल्म में भी अच्छी पंचलाइन्स और चटपटे, मज़ेदार वाक्य कुछ हद तक फ़िल्म को बचा लेते हैं। पर यहाँ जिसे जोक्स और प्रासंगिक कॉमेडी कहा गया है, वो सब कोई असर नहीं करता। २ घंटे ३६ मिनिट की लंबाई में आपको थोड़ी बहुत हसी आ जाती है, बस उतना ही फ़िल्म का प्रभाव है।
मीज़ान जाफरी के चयन पर सवाल उठाया जा सकता है। स्क्रीन पर वे अच्छे दिखते हैं, पर जब हैरत, गुस्सा या अचंबा ऐसे हावभाव दिखाने होते हैं, वे लड़खड़ाते नज़र आते हैं। दक्षिण भारतीय फ़िल्मों में काम कर चुकी प्रणिता सुभाष की ये पहली हिंदी फ़िल्म है और उन्होंने जाफरी से बेहतर प्रदर्शन किया है।
दस साल बाद फ़िल्मों में वापसी कर रही शिल्पा शेट्टी की उम्र जरा भी ज़्यादा नहीं लगती। अभिनय प्रदर्शन में भी उन्होंने ठीक ठाक काम किया है। परेश रावल साधारण वाक्यों में भी अपना प्रभाव छोड़ते हैं। आशुतोष राणा कठोर पिता की भूमिका में जचते हैं। हालाँकि कुछ जगहों पर वे ज़रूरत से ज़्यादा नाटकीय लगते हैं।
टीकू तलसानिया, मनोज जोशी और राजपाल यादव ने अपना काम ठीक ठाक किया है। पर मूल हंगामा के स्टार रहे अक्षय खन्ना मेहमान भूमिका में कोई खास मज़ा नहीं लाते।
हंगामा २ प्रियदर्शन की साधारण हिंदी फ़िल्मों की अगली कड़ी है। पुराने हंगामा से इसकी तुलना करने की कोशिश भी मत किजीए। यहाँ एक ही चीज़ अच्छी लगती है के निर्माता ने हंगामा ३ की कोई गुंजाईश नहीं दर्शाई है।
हंगामा २ डिज़्नी+ हॉटस्टार पर उपलब्ध है।
Related topics
Disney+ HotstarYou might also like
Review Hindi
Jogi review: Diljit Dosanjh-starrer is more like a thriller revolving around 1984 riots
The Ali Abbas Zafar film takes you by surprise with the riot angle brought in much earlier in the...
Review Hindi
Matto Ki Saikil review: Prakash Jha leads this sentimental saga of socio-economic inequality
Written and directed by M Gani, the Hindi film is a patchy yet heartbreaking look at the bleak class...
Review Hindi
Jhini Bini Chadariya review: A moving lamentation for the holy city of Varanasi
Ritesh Sharma’s hard-hitting film lays bare the social fabric of the city and the growing...