{ Page-Title / Story-Title }

Review Hindi

हामिद रिव्ह्यु – छोटे बच्चे की नज़र से कश्मीर के तनाव का वास्तविक दर्शन

Release Date: 15 Mar 2019

Read in: English | Marathi


Cinestaan Rating

  • Acting:
  • Direction:
  • Music:
  • Story:

Keyur Seta

ऐजाज़ ख़ाँ के हामिद में एक कश्मीरी बच्चे की कहानी द्वारा कश्मीर की परिस्थिति को दर्शाया गया है।

कश्मीर की खूबसूरती को इस दुनिया की जन्नत कहा जाता है। पर दुर्भाग्यवश कश्मीर की खूबसूरती से ज़्यादा वहाँ के स्थानिक, जिनमेंसे कुछ आज़ादी की मांग कर रहे हैं, और सुरक्षा दल इनके बीच के संघर्ष को हम ज़्यादा सुनते हैं।

इस देश के दूसरे हिस्सों में रहनेवाले हम लोग कश्मीर के इन तनावों की खबरें पढ़ते रहते हैं, पर उस पर ज़्यादा सोचते नहीं। पर इस बात को हम नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते के हमारे ही देश के इन लोगों को दोनों तरफ से अत्याचार और हत्याओं का सामना करना पड़ रहा है। वहाँ के सामान्य नागरिकों को अगर कुछ चाहिए तो वो है एक सामान्य ज़िंदगी।

ऐजाज़ ख़ाँ की हामिद में एक मासूम कश्मीरी बच्चे की कहानी द्वारा कश्मीर के इन परिस्थितियों का दर्शन होता है।

गुलमर्ग के तल पर बसे बुड़ेरकोट नामक छोटे गाव की यह कहानी है। रेहमत अली (सुमित कौल) अपनी पत्नी इशरत काज़मी (रसिका दुग्गल) और बेटे हामिद (तलहा अरशद रेशी) के साथ वहाँ रहता है।

रहमत नाव बनाकर पैसे कमाता है और उसे अपने हुनर पर नाज़ है, भले ही उससे ज़्यादा कमाई नहीं होती। उनके आसपास हमेशा विद्रोहियों और सेंट्रल रिज़र्व पुलिस फ़ोर्स (सी आर पि एफ) के बीच तनाव रहता है।

एक रात वहाँ के गंभीर हालात में रेहमत घर वापस लौट रहा होता है के उसे याद आता है के हामिद के लिए सेल बैटरी लाना वो भूल गया है। वो उसी रात फिर से लौटकर बैटरी लाने की रिस्क उठाता है लेकिन फिर गायब हो जाता है। इशरत अपने पती की खोज में हर जगह भटकती है पर फिर भी वो उसे ढूंढ नहीं पाती।

इसी बीच हामिद अपने पिता के फोन से एक नंबर मिलाता है जो वो सोचता है के अल्लाह का नंबर है। वो चाहता है के अल्लाह को ये सन्देश भेज सके के रेहमत को घर वापस भेज दे। वास्तविक यह नंबर एक सी आर पी एफ जवान अभय कुमार (विकास कुमार) का होता है। हामिद और अभय के बीच एक रिश्ता कायम होता है। पर रिश्ता कहॉं तक बढ़ेगा?

अगर ऊपरी तौर पर देखें तो एक इंसान का गायब होना और उसके बाद उसकी पत्नी और बेटे पर क्या बीतती है, यही हामिद की कहानी है। यह कहानी शायद कई भाषाओं की फ़िल्मों में कई बार आ चुकी होगी। पर कश्मीर के दूर दराज़ के भाग में जब ये कहानी घटती है, तो स्वाभाविक ही यह दूसरी फ़िल्मों से अलग हो जाती है।

सी आर पी एफ जवान और स्थानिक लोगों के बीच के तनाव को इस फ़िल्म में निडरता तथा निष्पक्षता से रखा गया है। एक दृश्य में आज़ादी लिखे हुए दिवार पर दो सैनिक पेशाब करते हुए दिखाए हैं। कश्मीर के बहुतांश हिस्सों में फैली भारतीय सेना कश्मीर की आज़ादी की मांग के बारे में क्या सोचती है ये इस दृश्य से स्पष्ट होता है।

फ़िल्म में स्थानिक लोगों के प्रति सहानुभूति दर्शाने का काम मुख्य किरदार द्वारा किया गया है। रेहमत का परिवार मासूम और नेक होकर भी अनेक परेशानियों से गुज़रता है।

स्थानिक राजनीतिक हालात के साथ साथ ये कहानी है दो अनजान लोगों के रिश्ते की। दोनों भले ही पीड़ित स्थानिक और भारतीय सेना ऐसे दो भिन्न विरोधी सिरों से हैं, मगर हैं तो फिर भी इंसान ही। हामिद और अभय का रिश्ता धीरे धीरे पनपता है। दोनों के बीच की बातचीत आपको सोचने पर मजबूर कर देता है और कुछ जगहों पर तो वो आपको खूब हसाता भी है।

फ़िल्म की कहानी में घट रही गंभीर घटनाओं के बावजूद इस विषय को सीधे और सरल तरीकेसे पेश किया गया है। इसी लिए फ़िल्म के अंत में घट रही कई सारी बातें बाकि फ़िल्म की ट्रीटमेंट से मेल नहीं खाती। हालांकि फ़िल्म एक खूबसूरत बात पर समाप्त होती है।

यह फ़िल्म एक उत्कृष्ट ऑडिओ विज्युअल नमूना है। सिनेमैटोग्राफर जॉन विल्मोर ने कश्मीर की खूबसूरत वादियों की बेहद लुभावने और साथ ही सांस रोकनेवाले दृश्य चित्रित किए हैं। एक साधारण से गाव की छोटी छोटी बारीकियां उन्होंने कैमरा में कैद की हैं। पार्श्वसंगीत भी बहुत अच्छा है।

बाल कलाकार तलहा अरशद रेशी आपको चकित करता है। उसका अभिनय इस फ़िल्म को अधिक भावनात्मक बनाने में अहम भूमिका निभाता है। उसकी मासूमियत और स्वाभाविक अभिनय से आप अपने आप उससे जुड़ जाते हैं।

रसिका दुग्गल, जिन्हें हमने मंटो (२०१८) में साफ़िया मंटो की भूमिका में देखा था, इशरत काज़मी की भूमिका में भी उतनी ही प्रभावी हैं। अपने किरदार के साथ पूरा न्याय करती हुई वे एक दूर दराज़ के गाव की बेसहारा औरत के रूप में जचती हैं। कश्मीरी लहज़े की हिंदी में भी वे सहज हैं।

विकास कुमार एक गुस्सैल सैनिक की भूमिका में हैं जो विद्रोहियों का तिरस्कार करता है। पर जैसे जैसे फ़िल्म आगे बढ़ती है, वो और अधिक सभ्य और शांत बनते जाता है। सुमित कौल की भूमिका छोटी अवश्य है पर उसमे भी वे यादगार काम करते हैं।

हामिद हिंदी की उन चुनिंदा फ़िल्मों में से है जिसमे कश्मीर का वास्तविक चित्रण किया गया है, जैसे के विशाल भारद्वाज की हैदर (२०१४) तथा पियूष झा की सिकंदर (२००९)।

हामिद २०वे मुंबई फ़िल्म फेस्टिवल में ३० अक्टूबर २०१८ को दिखाई गई थी।

 

Related topics

You might also like