Sonal Pandya
मुम्बई, 07 Mar 2020 8:30 IST
रुचि नरेन निर्देशित तथा कियारा अडवाणी अभिनीत इस फ़िल्म में बलात्कार की केस के दोनों पक्षों को रखा गया है, लेकिन उसका प्रभाव फिका नज़र आता है।
संगीत, ड्रग्स और शराब की एक नशीली रात बलात्कार के आरोप के साथ खत्म होती है। विजय प्रताप सिंह उर्फ़ विजे (गुरफतेह पीरज़ादा) पर ये आरोप हुआ है। विजे अमीर है और डूबी डू नामक बैंड का मुख्य गायक है। तनु कुमार (आकांक्षा रंजन कपूर) एक स्कॉलरशिप छात्र है, जिसने ये आरोप किया है। क्या विजे दोषी है या तनु मी टू आंदोलन का फायदा उठा रही है?
रुचि नरेन की गिल्टी (२०२०) धर्मा प्रॉडक्शन की डिजिटल शाखा धर्माटीक का पहला प्रयास है। फ़िल्म में इस केस की तह तक जाकर सत्य को सामने लाया जाता है। पर अंत तक पहुंचने के लिए कई किरदार या तो झूठ बोल रहे हैं या तथ्य बता रहे हैं। ये पूरी कहानी कॉलेज के माहौल में बुनी गयी है, जहाँ हर किसी को कुछ न कुछ छुपाना है।
फ़िल्म की शुरुवात उस रात असल में क्या हुआ था, इसकी तफ़्दीश से होती है। पर गिल्टी में हमें दो किरदार अधिक सशक्त रूप से दिखते हैं। एक विजे की गर्लफ्रेंड नानकी दत्ता (कियारा अडवाणी) और दूसरा स्टार वकील दानिश अली बेग (ताहेर शब्बीर) जो तथ्य को सामने लाते हुए अपने क्लायंट को बचाने की कोशिश कर रहा है।
तथ्य और काल्पनिक बातों के बीच झूलती हुई ये कहानी सभी टुकड़ो को जोड़ती हुई सच तक पहुंचती है। काल्पनिक सेंट मार्टिन्स कॉलेज में ये पूरी फ़िल्म घटती है। विजे और नानकी की जोड़ी का कॉलेज में बोलबाला है। विजे गायक के रुप में बेहद मशहूर है, हर कोई उस जैसा बनना चाह रहा है, तो नानकी गाने रचती है और उसे रोड्स स्कॉलरशिप मिलने वाली है। पर २०१८ के वैलेंटाइन डे के दिन विजे नानकी को बताता है के उसने तनु के लिए उसे धोका दिया है। तनु धनबाद, झारखंड, की थिएटर सोसायटी की छात्र है और नानकी के साथ उसका पहले ही झगड़ा हो चुका है।
विजे और नानकी का रिश्ता फिर भी बना रहता है। पर एक साल बाद तनु लौटती है और बताती है के उसके साथ क्या हुआ था। वो जो आरोप करती है, उससे यूँ लगता है के तब भारत में चल रहे मी टू आंदोलन का वो फायदा उठा रही है। विजे, उसके दोस्त और नानकी कहते हैं के उसे सुर्खियों में आने का चस्का है। बल्कि, नानकी सबके सामने तनु को थप्पड़ मारती है और उससे बदला लेने की ठान लेती है।
बैंड के सदस्यों में इन आरोपों से हड़कंप मच जाता है। कॉलेज तनु और विजे का समर्थन करनेवाले दो ग्रुप्स में बट जाता है। जो बड़े हैं, वो इस परिस्थिति को संभालने की कोशिश में लगे हैं। विजे के अमीर पिता (मनु ऋषि चड्ढा) और माँ (निकी वालिया) वकीलों की सहायता से अपने बेटे को इस केस से बाहर निकालने की कोशिश कर रहे हैं।
दानिश इस कॉलेज का छात्र रह चुका है। जैसे जैसे केस बढ़ता है, वो सच की तरफ झुकता जाता है। नानकी, जिसकी उस रात की कुछ परेशान करनेवाली यादे हैं और अपने निजी जीवन में भी वो उलझी हुई है, वो भी अपने आप से झुलस रही है।
गिल्टी का लेखन रुचि नरेन और कनिका ढिल्लों ने किया है। पूर्वार्ध में कई सारी जानकारी और किरदारों की या घटनाओं की पार्श्वभूमि हमें देखने मिलती है। बलात्कार के पहले और बाद की घटनाओं को बार बार उलट पलटकर दर्शाया गया है, जिसमे उलझना संभव है। बोधादित्य बैनर्जी का संकलन भी अधिक मददगार साबित नहीं होता।
संगीत, ट्रेंडी कपडे और टैटू के माध्यम से डूबी डू बैंड के सुपर-कूल अवतार को दिखाने में पूर्वार्ध का बहुत समय बर्बाद हुआ है। पॉप संस्कृति का उल्लेख कई बार है और विजे पर हुए बलात्कार के आरोपों पर युवाओं का आक्रोश बढ़ा चढ़ा कर दर्शाया गया है।
उत्तरार्ध में इस केस की जड़ तक पहुंचने का प्रयास है। उस रात क्या हुआ था? कौन झूठ बोल रहा है? एक अंतिम आमना-सामना है जहाँ संगीत के मंच पर सच सामने आता है। नानकी भी सबके सामने अपने सच को रखती है और खुद ही अपना एक राज़ खोलती है। जैसे ही ये सब सच सामने आने लगता है, गिल्टी की कहानी अपना अंतिम पड़ाव पूरा कर देती है।
अतिका चौहान ने संवाद लिखे हैं, जो ज़्यादातर अंग्रेजी में हैं। संवाद और नरेन के स्क्रीनप्ले में कुछ महत्वपूर्ण मुद्दों को दर्शाया गया है, की कैसे भारत में लैंगिक उत्पीड़न के केसेस से निपटा जाता है। अगर कोई युवा लड़की, फिर वो नानकी हो या तनु, अंग प्रदर्शन करते कपडे पहनती है, तो क्या उसे छेड़ना स्वाभाविक है? स्क्रिप्ट में हमें ये भी देखने मिलता है के ऐसा बर्ताव करनेवाले पुरुष या स्त्री को कैसे देखा जाता है। पुरुषों का बर्ताव स्वीकारा जाता है, वहीं महिलाओं को ठीक से पेश आने की सलाह मिलती है।
फ़िल्म के लैंगिक उत्पीड़न के एक महत्वपूर्ण दृश्य को स्त्रियों के नज़रिये से दर्शाया गया है। विशेष बात ये है के अधिकतर भारतीय फ़िल्मों में इसे जिस तरह खास दर्शकों को खुश करने के मौके की तरह देखा जाता है, वैसे नहीं दर्शाया गया है। नानकी के कथन पर शुरुवात में भरोसा करना कठिन है। जैसे के ढिल्लों की जजमेंटल है क्या (२०१९) की मुख्य पात्र को भी दर्शाया गया था। पर आखिरकार वही पूरी कहानी को जोड़ती है।
अडवाणी के किरदार के बालों का रंग भी बदलते रहता है और उसका अभिनय भी। पर नानकी का किरदार इसी तरह लिखा गया है। उनका अंतिम विस्फोट भले ही उत्कट है, पर फिर भी हम उससे पूरी तरह जुड़ नहीं पाते। कपूर अपनी पहली फ़िल्म में अच्छा प्रदर्शन करती है। ताहेर शब्बीर का वकील भी ठीक ठाक है।
अंकुर तिवारी का संगीत, जो इस फ़िल्म में अहम होना चाहिए था, यहाँ प्रभाव नहीं छोड़ता। डूबी डू बैंड देखने में कोई मेटल बैंड की तरह लगते हैं, पर वो नानकी की उर्दू शायरी पेश करता है, जिसे कौसर मुनीर ने लिखा है।
गिल्टी अंत में ये सवाल भी उठाता है के मी टू आंदोलन में जो आरोपी थे, उन में से कितने अपनी पुरानी जगह पर उसी स्तर पर लौटे। इस आंदोलन की चर्चा पर ये फ़िल्म एक पहला कदम मानी जा सकती है, पर ये कदम प्रभावशाली नहीं बन पाया है।
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