Mayur Lookhar
मुम्बई, 28 Mar 2019 9:00 IST
पहली बार निर्देशन कर रहे क़ासिम खल्लो ने अपनी फ़िल्म में आजके ज़्यादातर महिला और पुरुषों को खलनेवाली समस्या को पेश किया है। ये समस्या है बालो का झड़ना।
किसी का शारीरिक व्यक्तित्व उसके प्रभाव को बढ़ा सकता है। बेहतर वेशभूषा व्यक्तित्व को उठाव देती है। बेहतर केशभूषा किसी के लुक को बदल सकती है। पर गंजापन ज़्यादातर लोगों के मज़ाक का कारण बनते दिखता है। पुरुषों के लिए गंजेपन को झेलना शायद उतना मुश्किल न हो, पर लड़कियों को इसे झेलना एक गंभीर समस्या बन जाती है।
पहली बार निर्देशन कर रहे क़ासिम खल्लो की फ़िल्म गॉन केश सिलीगुड़ी की एनाक्षी दासगुप्ता (श्वेता त्रिपाठी) की कहानी है, जो एलोपेसिया जैसी बीमारी का सामना कर रही है। इस बीमारी की वजह से स्कूल के दिनों से ही उसके बाल झड़ने शुरू हो जाते हैं और २५ वर्ष की आयु में वो पूरी तरह से गंजी हो जाती है।
एनाक्षी एक मॉल में बतौर सेल्सगर्ल काम कर रही है। उस मॉल में हो रहे डान्सिंग कॉम्पिटिशन में उसे हिस्सा लेना है। एनाक्षी कॉम्पिटिशन में हिस्सा लेने के लिए नौकरी तक छोड़ देती है। पर इस प्रतियोगिता की हार जीत से अधिक उसे इस बात का डर है के अगर इस दौरान उसके गंजेपन का रहस्य सबके सामने खुल जाए तो क्या होगा।
एनाक्षी की एक और बड़ी समस्या ये है के उसके बालों का जो महंगा इलाज चल रहा है, उसका अभी तक अपेक्षानुरूप परिणाम नहीं आया है। उसके माता पिता को भी ये चिंता सता रही है के हमारी गंजी बेटी से कौन शादी करेगा?
निर्देशक क़ासिम खल्लो ने अपनी फ़िल्म में आजके ज़्यादातर महिला और पुरुषों को खलनेवाली समस्या को पेश किया है। बालों के झड़ने की समस्या से कैसे निपटा जाए?
गॉन केश एक सीधी सरल कहानी है, जिसे सरल कथासूत्र में पेश किया गया है। इसमें कुछ भावनात्मक क्षण भी हैं, पर इस कहानी से अगर आपको कुछ बांधके रखता है तो वो है कहानी के पात्र एनाक्षी, उसके पिता अनूप (विपिन शर्मा) और उसकी माँ देबश्री दासगुप्ता (दीपिका अमीन) का सहज लेकिन बेहतरीन अभिनय।
मसान (२०१५) और हरामखोर (२०१७) जैसी सराही गई फ़िल्मों में उनके दमदार अभिनय की तरह यहाँ भी श्वेता त्रिपाठी अपना प्रभाव बनाए रखती हैं। त्रिपाठी गंजे लुक में भी सहज लगती हैं, जिसमे दरअसल प्रीतिशील सिंह के प्रॉस्थेटिक मेकअप का कमाल भी शामिल है। त्रिपाठी एनाक्षी के झुलसने को गंभीरता से प्रकट करती हैं।
त्रिपाठी और विपिन शर्मा की बाप-बेटी की केमिस्ट्री देखते बनती है। दोनों के भावुक क्षण आपको भी भावुक कर देते हैं। दवाइयों के भारी डोस से एनाक्षी के चेहरे पर भी बाल उगने लगते हैं और सर पर उगनेवाले नए बाल भी कमज़ोर पड़ने लगते हैं। ऐसे समय एनाक्षी टूटने लगती है, लेकिन पिता उसे विश्वास दिलाते हैं के उसके गए हुए बाल वापस आएंगे। यह भावुक दृश्य दोनों कलाकारों के अभिनय से आपके दिल को छू लेता है।
विपिन शर्मा तारे ज़मीन पर में एक कड़क पिता थे, लेकिन यहाँ वे एक भावुक पिता के रूप में उतने ही आश्वस्त लगते हैं। अनूप दासगुप्ता अपने बेटी के गंजेपन की समस्या को लेकर बहुत चिंतित तो है, पर साथ ही उसका वर्षों से एक सपना भी रहा है। अपनी पत्नी को ताज महल ले जाने का सपना। ऐसे कई अनूप और देबश्री होंगे जो वर्षों अपने गाँव से बाहर नहीं निकले या कभी हवाई जहाज़ में नहीं बैठे होंगे। ऐसे किरदार आज की वास्तविकता से मेल रखते हैं और आप उन्हें सहज ही पसंद करने लगते हैं।
जीतेन्द्र कुमार ने इस फ़िल्म में एक अहम भूमिका निभाई है और अपने मासूमियत भरे अंदाज़ में उन्होंने अपनी छाप छोड़ी है।
फ़िल्म का पहला भाग थोड़ा और सटीक हो सकता था। पर ये भी उतना ही सच है के गॉन केश जैसी पारिवारिक फ़िल्म ओवर ड्रामैटिक नहीं होनी चाहिए। 'बीबी' गाना मज़ेदार है पर बाकि गानों में कोई खास बात नहीं।
गॉन केश में आगे क्या होगा इसका अंदाज़ा अवश्य लगाया जा सकता है, पर फिर भी ये आज की फ़िल्म है। बालों की समस्या पर महंगे इलाज पर शून्य परिणाम दिलानेवाले ढेर सारे क्लिनिक्स पर ये फ़िल्म सवाल उठती है। पर उन्हें कोई दोष दिए बगैर गॉन केश हमें ये सबक सिखाती है के कोई भी कभी परफेक्ट नहीं होता और जो सुंदरता बालों के साथ बढ़ती है, वो धीरे धीरे उन्ही के साथ झड़ती भी है।
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