Sonal Pandya
मुम्बई, 21 Dec 2021 14:32 IST
एक साधारण समझी जानेवाली टीम के विजयगान को दर्शाती कबीर खाँ की स्पोर्ट्स फ़िल्म कई भावनिक क्षणों को जीवित करती है।
भारतीय क्रिकेट टीम को १९८३ के विश्वकप में एक साधारण टीम समझा जाता था। बल्कि खुद भारतीय क्रिकेट नियामक मंडल (बीसीसीआई) का भी अपनी टीम के प्रति यही रवैय्या था। ऐसी टीम के विजय की कहानी को इस फ़िल्म से बेहतर शायद नहीं बताया जा सकता था। शायद ये बड़े परदे की ही कहानी थी।
लेखक-निर्देशक कबीर खान और लेखक संजय पुरण सिंह और वसन बाला की स्क्रिप्ट का अंत भले ही हमें पता हो, पर उन्होंने इस तरह ये स्क्रिप्ट बुनी है के कई क्षण वाकई में आपके मन में अस्वस्थता पैदा करते हैं। इंग्लैंड में टीम के आने से लेकर हर बात को एक सुनहरी याद की भांति यहाँ दर्शाया गया है।
भारतीय टीम की पहली मैच दो बार विश्वकप विजेता रहे वेस्ट इंडीज के साथ थी, जिसमे भारतीय टीम विजयी रही, वहीं अंतिम मैच भी वेस्ट इंडीज के खिलाफ थी। इस क्रम को इस तरह बखूबी दर्शाया गया है के ये कहानी आपको हंसाती भी है, रुलाती भी है और टीम का हौसला बढ़ाने के लिए जो वास्तविक जल्लोष हम करते हैं, उसके लिए भी हमें मजबूर कर देती है। कप्तान कपिल देव (रणवीर सिंह) और टीम मैनेजर पी आर मान सिंह (पंकज त्रिपाठी) को अपने टीम के सदस्यों की काबिलियत पर पूरा विश्वास होता है। वे जानते हैं के जब टीम को जरुरत होगी, हर कोई मैदान में अपना सर्वस्व देगा।
मुश्किलें वाकई में कम नहीं थीं। वेस्ट इंडीज में उनके स्टार खिलाडी विव रिचर्ड्स थे और इस टीम ने इससे पहले विश्वकप में एक भी मैच हारी नहीं थी। वहीं भारत ने इससे पूर्व विश्वकप में एक भी मैच जीती नहीं थी। पर अब चीज़ें बदलने वाली थीं। फ़िल्म का रुख तब बदलता है जब भारत बनाम झिम्बाब्वे मैच शुरू होता है। १८ जून १९८३ को हुई ये वो ऐतिहासिक मैच है जिसका प्रक्षेपण तब हो नहीं पाया था। कपिल देव द्वारा खेली गयी नाबाद १७५ रनों की पारी बेहद भावुक करनेवाली है और भारतीय क्रिकेट के इतिहास के सबसे यादगार लम्हों में से एक है। उनकी इस पारी ने टीम और उनकी विश्वकप की कहानी को पूरी तरह से बदल दिया।
रणवीर सिंह ने कपिल देव की भूमिका को यादगार बना दिया है। बाकि कलाकारों ने भी बेहद सहजता से अपने किरदार निभाए हैं। कृष्णमचारी श्रीकांत की भूमिका में जीवा, मोहिंदर अमरनाथ की भूमिका में साकिब सलीम, सुनील गावस्कर बने ताहिर राज भसीन, हैरी संधू का मदन लाल, एमी विर्क बलविंदर सिंह संधू की भूमिका में और जतिन सरना दिवंगत यशपाल शर्मा की भूमिका में चार चाँद लगाते हैं। टीम की जीत में इन खिलाड़ियों का भी योगदान रहा। इस फ़िल्म द्वारा दिवंगत यशपाल शर्मा को आदरांजलि दी गयी है। जीवा, विर्क और सरना फ़िल्म में कुछ हलके फुलके क्षण भी लेकर आते हैं।
खान ने टीम के अंदर जो सहजता थी और टीम के सदस्यों में दोस्ती थी, उसे भी दर्शाया है, जिसका सही इस्तेमाल टीम के कप्तान और मैनेजर खूबी से करते हैं। मैनेजर द्वारा हर मैच से पहले जो प्रेरणादायी मुद्दे बताये गए हैं, उसे भी खूबसूरती से पिरोया गया है। निर्देशक और फ़िल्म निर्माण के बाकि सभी विभाग ने काफी मेहनत लेकर ज़्यादा से ज़्यादा तथ्य के साथ रहने की कोशिश की है।
कपिल देव की पत्नी रोमी की भूमिका में निर्माती दीपिका पादुकोण खूबसूरत लगती हैं, जो अपने पति और टीम का समर्थन देने इंग्लैंड पहुँचती है। वास्तविक जीवन की जोड़ी रणवीर और दीपिका के बीच के दृश्य सहज लगते हैं। बोमन ईरानी, नीना गुप्ता और वामिका गब्बी की भूमिकाएं छोटी हैं, मगर फिर भी ये किरदार भी संस्मरणीय हैं। कास्टिंग टीम की यहाँ निःसंदेह प्रशंसा होनी चाहिए जिन्होंने ना सिर्फ भारतीय टीम और किरदार बल्कि विपक्षी टीम के किरदारों के लिए भी बेहतरीन चुनाव किए हैं।
बलविंदर सिंह संधू को फ़िल्म के क्रिकेट के हिस्सों के सहायक निर्देशक का क्रेडिट दिया गया है। मूल टीम के सदस्यों ने भी फ़िल्म में मेहमान भूमिकाएं निभाई हैं, जिन्हे देखकर ख़ुशी होती है। २ घंटे ४२ मिनिट लम्बी फ़िल्म में समय का कभी पता ही नहीं चलता।
बारीकियों पर इस फ़िल्म में विशेष ध्यान दिया गया है। क्रिकेट फैन्स को ये चीज़ें ज़रूर भाएंगी और खेल किस दिशा में रुख करनेवाला है इसका अंदाज़ लगाने की जो स्वाभाविक प्रक्रिया से हम गुजरते हैं, वो यहाँ भी होता है। एडिटर नितिन बैद ने रील और रियल को फोटो और फुटेज के माध्यम से खुबसूरती से जोड़ा है। इसमें अच्छी खासी रिसर्च हुई होगी, ये भी स्पष्ट होता है।
भारत में और इंग्लैंड में भी रेडिओ और टेलीविजन पर जमे हुए दर्शक का नज़ारा यहाँ भी दिखता है। आज के सूचना के जंजाल में ये चीज़ें देख कर मन को सहजही आनंद होता है। कोविड-१९ के बुरे हालात आज भी परेशान कर रहे हैं और ऐसे में भारतीय टीम को सभी लोग सच्चे मन से समर्थन देते हुए देखना निश्चितही सुखद लगता है।
प्रीतम के संगीत द्वारा सही समय पर इन भावनाओं को तीव्रता मिलती है। ये ऐसा अनुभव है जिससे कोई चूकना नहीं चाहिए। अगर खान की इस फ़िल्म पर अगले वर्ष कई पुरस्कारों का वर्षाव हो, तो कोई आश्चर्य नहीं। क्रेडिट्स देखने के लिए भी ज़रूर समय दीजिए।
८३ फ़िल्म २४ दिसंबर को प्रदर्शित हुई है।