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पार्श्वगायक-संगीतकार बप्पी लाहिरी का देहांत

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अपने किशोर अवस्था में ही उन्होंने संगीत देना शुरू कर दिया था। १५ फरवरी को मुम्बई के अस्पताल में उन्होंने आखरी साँस ली। वे ६९ वर्ष के थे।

फाइल फोटो

Our Correspondent

हिंदी फ़िल्मों में १९८० और १९९० के दशक में डिस्को बीट्स को मशहूर करनेवाले लोकप्रिय पार्श्वगायक तथा संगीतकार बप्पी लाहिरी का मंगलवार की रात को मुम्बई के एक अस्पताल में निधन हुआ। वे ६९ वर्ष के थे।

वे कई सारी शारीरिक बीमारियों से बाधित थे। पिछले वर्ष अप्रैल में कोविड-१९ की जाँच में पॉजिटिव पाए जाने के बाद उन्हें ब्रीच कैंडी अस्पताल में भर्ती किया गया था। जुहू के क्रिटीकेयर अस्पताल में उन्हें पिछले महीने भर्ती किया गया और सोमवार को उन्हें डिस्चार्ज मिला था। पर अगले ही दिन उन्हें फिर से दाखिल करना पड़ा।

क्रिटीकेयर अस्पताल के डायरेक्टर डॉ दीपक नामजोशी ने न्यूज एजेंसी प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया को बताया, "लाहिरी को एक महीने पहले अस्पताल में लाया गया था और सोमवार को उन्हें डिस्चार्ज मिल गया था। पर मंगलवार को उनकी तबियत ख़राब हुई और उनके परिवार ने डॉक्टर को घर पर बुलाया। उन्हें फिर अस्पताल लाया गया। उन्हें कई सारी बीमारियां थी। मध्यरात से थोड़ा पहले ओएसए (ऑब्स्ट्रक्टिव स्लीप अप्निया, सांस लेने में कठिनाई) से उनका निधन हुआ।"

उनका मूल नाम था अलोकेश लाहिरी। २७ नवंबर १९५२ को उनका जन्म पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी में अपरेश और बांसुरी लाहिरी के यहाँ हुआ। उनके माता-पिता दोनों गायक थे। बप्पी तीन वर्ष के थे तबसे उन्होंने तबला बजाना शुरू किया और अपने माता-पिता से उन्होंने संगीत की शिक्षा हासिल की। किशोर अवस्था में ही उन्होंने संगीत देना प्रारम्भ किया और बंगाली फ़िल्म दादू (१९६९) के लिए उन्होंने पहली बार संगीत निर्देशन किया।

चार वर्ष बाद उन्होंने उनकी पहली हिंदी फ़िल्म नन्हा शिकारी (१९७३) के लिए संगीत दिया, पर ताहिर हुसैन की जख्मी (१९७५) से उनका नाम सही मायने में चर्चा में आया। इस फ़िल्म के लिए उन्होंने गाना भी गाया।

संगीत के साथ साथ वे सोने के आभूषण और रंगीन चश्मों के लिए भी जाने जाते रहे। उनके मशहूर गानों में चलते चलते (१९७६), सुरक्षा (१९७९), शिक्षा (१९७९), डिस्को डांसर (१९८२), हिम्मतवाला (१९८३), गिरफ़्तार (१९८५), डांस डांस (१९८७), सैलाब (१९९०), शोला और शबनम (१९९२) और आँखें (१९९३) जैसी फ़िल्मों के गानों का शुमार है।

शराबी (१९८४) के लिए उन्हें फिल्मफेयर पुरस्कार मिला था। वर्ष २०१८ में ६३वे फ़िल्मफ़ेयर में उन्हें लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार देकर सम्मानित किया गया था।

शुभ मंगल ज़्यादा सावधान (२०२०) में साहेब (१९८५) फ़िल्म का बप्पी लाहिरी द्वारा संगीतबद्ध गाना 'यार बिना चैन कहाँ रे' को रिमिक्स करके इस्तेमाल किया गया था। इसी प्रकार तनिष्क बागची ने बागी ३ (२०२०) में तोहफा (१९८४) फ़िल्म का बप्पी लाहिरी का 'एक आँख मारूँ' ये गाना 'भंकस' के नाम से पेश किया था।

बप्पी लाहिरी के पश्चात् उनके परिवार में उनकी पत्नी चित्राणी, बेटी रीमा और बेटा बाप्पा हैं। उनके पोते रेगो-बी ने दादा के नक्शेकदम पर आगे बढ़ते हुए पिछले वर्ष 'बच्चा पार्टी' ये गाना गाया था।

परिवार द्वारा जारी निवेदन में कहा गया, "हमारे लिए ये बेहद दुःख की घडी है। कल सुबह बाप्पा लॉस एंजेलिस से आएंगे और उसके बाद अंतिम संस्कार किए जायेंगे। हम उनकी आत्मा के लिए प्यार और दुआओं की प्रार्थना करते हैं। आपको संबंधित जानकारी देते रहेंगे।"

भारतीय फ़िल्म इंडस्ट्री की ओर से कई फ़िल्मी हस्तियों ने शोक प्रकट किया और उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की।

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