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कुछ फ़िल्में हमेशा यादगार रहती हैं, एक दूजे के लिए का जादू बरकरार रहने पर कहा रति अग्निहोत्री ने

फ़िल्म प्रदर्शन की ४०वि वर्षगाँठ पर एक ख़ास बातचीत में अग्निहोत्री ने अपनी पहली हिंदी फ़िल्म के बारे में बताया। कमल हासन इस फ़िल्म में नायक बने थे।

एक दूजे के लिए (१९८१) की क्रेडिट लिस्ट में फ़िल्म इंडस्ट्री के बड़े बड़े नाम देखने को मिलते हैं। प्रसिद्ध निर्माता एल वि प्रसाद द्वारा निर्मित, के बालचंदर द्वारा निर्देशित, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल का संगीत और आनंद बक्शी के गीत, कमल हासन, रति अग्निहोत्री, माधवी और एस पि बालसुब्रमन्यम का हिंदी फ़िल्मों में प्रवेश ये सारी चीज़ें इस फ़िल्म से जुडी हैं।

इतने सारे निपुण लोग और बहुतही अच्छी बुनी हुई प्रेम कहानी होने पर, ये कोई आश्चर्य नहीं था के फ़िल्म ब्लॉकबस्टर साबित हुई।

यह फ़िल्म बालचंदर की तेलुगु हिट फ़िल्म मरो चरित्र (१९७८) की रीमेक थी। मूल फ़िल्म में भी कमल हासन नायक थे। यह शोकांत कहानी दो भिन्न संस्कृति के प्रेमियों की दास्तान है। अपने परिवारों के तीव्र विरोध के बाद दोनों अपनी जान देकर अपने प्रेम को अमर कर देते हैं।

यह फ़िल्म तुरंत हिट साबित हुई और इसे फ़िल्मफेयर के १३ नामांकन और ३ पुरस्कार हासिल हुए – सर्वोत्तम संकलन, सर्वोत्तम गीतकार और सर्वोत्तम पटकथा।

५ जून १९८१ को प्रदर्शित इस फ़िल्म के ४० वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर फ़िल्म की मुख्य अभिनेत्री रति अग्निहोत्री ने फ़िल्म के आज भी बरकरार रहे जादू के बारे में बताया।

"कुछ फ़िल्में हमेशा यादगार बनी रहती हैं और मैं भाग्यशाली थी के मेरी पहली फ़िल्म यादगार साबित हुई," सिनेस्तान से फोन पर हुई बातचीत में उन्होंने कहा। "इतना अच्छा सेट-अप, अच्छी स्क्रिप्ट, अच्छे सहकलाकार, अच्छा संगीत, फ़िल्म में क्या अच्छा नहीं था? अच्छे निर्देशक, निर्माता! मैं खुशकिस्मत थी।"

अग्निहोत्री एक पंजाबी परिवार से थीं, जिसका फ़िल्मों से कोई सम्बन्ध नहीं था। एक स्कूल के नाटक में पि भारतीराजा ने उन्हें देखा। वे पुथिया वारपूगल (१९७८) की नायिका खोज रहे थे। उन्होंने अग्निहोत्री के पिता को फ़िल्म के लिए शूट करने के लिए मनाया। पढाई पर कोई असर नहीं होगा इस बात का खयाल रखने के लिए उन्होंने तैयारी दर्शाई। ये ऐसा मौका था जिसने अग्निहोत्री के करियर की दिशा बदल दी। क्योंकि तब तक वे डॉक्टर बनना चाहती थीं। तमिल और तेलुगु फ़िल्मों में अपनी छाप छोड़ने के बाद रति अग्निहोत्री ये नाम स्टार्स में शामिल हुआ।

एल वि प्रसाद ने एक दूजे के लिए फ़िल्म के लिए उनके पिता को पूछा और सिर्फ उन्हें मरो चरित्र देखने के लिए कहा गया क्योंकि वे नहीं चाहते थे के रति पर मूल तेलुगु फ़िल्म का कोई प्रभाव हो।

"फ़िल्मों को लेकर मेरा व्यवहार काफ़ी बचपनेभरा रहता था," उन्होंने कहा। "मैं सिर्फ निर्देशक बालचंदर की नक़ल किया करती थी। वे मुझे दृश्य समझाते और उनकी आँखें काफी अभिव्यंजक थीं और वे मुझे बोलते के बड़ी आँखे करो या रोओ और मैं वैसा कर देती थी।

"वे कैमरा रोल कर देते और फिर कट नहीं करते। कभी कभी किसी दृश्य के लिए इतना समय लगता था क्योंकि मैं छोटी थी और उस दृश्य में कुछ ना कुछ व्यक्त करती रहती, पर उन्हें उस दृश्य से जो चाहिए था वो मिल ही जाता था। मुझे उस समय नहीं पता था के आपको कम समय में व्यक्त होना है, मैं बस सुनती और क्योंकि मैं अच्छी छात्रा थी, मैं सूचनाओं का ध्यान से पालन करती थी।

"मेरा स्वभाव भी मस्ती भरा था, तो वो भी फ़िल्म के किरदार के साथ सही बैठ गया। मैंने कोई अभिनय नहीं किया, मैं बस मैं बनी हुई थी। मैं इतनी छोटी थी के कितनी तरह से भावों को प्रकट करना होता है ये मैं नहीं जानती थी। प्यार में पड़ना क्या होता है और उसकी भावनाएँ क्या होती हैं ये मुझे पता नहीं था," उन्होंने कहा।

फ़िल्म ज़्यादातर आंध्र प्रदेश के विशाखापट्नम में शूट हुई थी और वहाँ की गर्मी, समुन्दर के रेत के किनारे और पत्थर, जो की स्क्रीन पर रोमैंटिक दिखते हैं, पर फ़िल्म शूट के लिए मुश्किल थे।

"हमारे पास ऐसी आलिशान सुविधाएं नहीं थीं जो आज के कलाकारों को मिलती हैं," उन्होंने कहा। "हमें शूटिंग की जगह पर चल कर जाना पड़ता था और वो सब बड़े पत्थरोंवाली जगह थी। चप्पल पत्थरो से फिसल जाया करते थे, इसलिए मुझे उन्हें हाथ में लेकर चलना पड़ता था और जब तक लोकेशन पर पहुँचती, मेरे पैरों पर फफोले निकल आते, फिर भी मुझे नाचना, गाना पड़ता और सब कुछ बिना किसी आह के करना पड़ता।

"मेरे माता-पिता ने हमें हमेशा अच्छा काम करना सिखाया था, तो निर्देशक जब हमें कुछ करने को कहते, तो मैं पहले टेक में ही सबसे अच्छा करने का प्रयास करती थी। वही मेरा लक्ष्य था, इसलिए मुझे जो सूचनाएँ दी जाती थीं उन्हें मैं ध्यान से सुनती थी और शॉट में अपने सर्वोत्तम तरीकेसे पेश करने का प्रयास करती थी।"

फ़िल्म का एक संस्मरणीय क्षण है जहाँ वासु बने कमल हासन सपना की भूमिका निभा रही रति अग्निहोत्री की नाभि पर लट्टू घुमाते हैं, जिससे उसे गुदगुदी होती है और वो खिलखिला कर हसने लगती है।

"स्क्रीन पर ये दृश्य बहुत अच्छा लगता है, पर इसे शूट करना बड़ा तकलीफदेय था," उन्होंने याद करते हुए बताया। "विशाखापट्नम में लाल मिट्टी है और हम जिस समय वहाँ थे तब ४० डिग्री से ऊपर तापमान था। मैं उस मिट्टी पर सोयी हुई थी और लट्टू पेट पर घूमना इतना सहज नहीं था और आपके चेहरे पर ये भाव चाहिए के आप गुदगुदा रहे हैं और आपकी नाभि को हिलने भी नहीं देना है, नहीं तो लट्टू निचे गिर जाएगा।

"ये दृश्य एक शॉट में शूट हुआ, जो के लट्टू से चेहरे पर और फिर लट्टू पर जाता है। मुझे लगता है ये सब करने के लिए आपका युवा होना ज़रूरी है," उन्होंने कहा।

पर एक स्कूल जानेवाली लड़की होने के अपने फायदे भी थे, क्योंकि सब उन्हें बड़ा लाड प्यार करते थे। "हमारे पास एल वि प्रसाद जैसे बड़े प्यारे निर्माता थे," उन्होंने बताया। "ऐसा भी समय आता जब मैं पूरी तरह थक जाती और वे किसी से मेरे लिए नारियल पानी लाने को कहते और मेरे साथ बात करते और अपने पुराने प्रॉडक्शन्स  के बारे में बताते।"

'मेरे जीवन साथी' गाने की शूटिंग मज़ेदार थी, जो के मद्रास (अब चेन्नई) के ताज कोरोमंडल में हुई थी। "उन्हें आठ घंटे के लिए लिफ्ट मिली थी और शूट करना काफी मज़ेदार था क्योंकि सब कुछ बिना किसी तैयारी के और तभी सोचा हुआ था," अग्निहोत्री ने कहा। "इसमें कोई कोरिओग्राफी नहीं थी। कैमरे को लिफ्ट में रख दिया गया था और हमें उतनी सी जगह में गाना था और हँसना था। कमल कुछ करते और मैं कुछ और करती, हम एक दूसरे के कृत्यों का जवाब देते और ऐसे ही गाना शूट हुआ।"

यह फ़िल्म बेहद सफल हुई और युवाओं में इसे बेहद पसंद किया गया, कुछ ने तो फ़िल्म के अंतिम दृश्य से प्रेरणा लेकर अपनी ज़िंदगी भी ख़तम कर दी। इस कारण अधिकारियों ने फ़िल्म के निर्देशक से क्लाइमैक्स बदलने की विनती की। उन्होंने दूसरे क्लाइमैक्स का प्रयोग करके देखा, लेकिन उससे काम नहीं बना तो पहला क्लाइमैक्स ही रखा गया।

"निर्देशक का मानना था के ये एक फ़िल्म है और ये मेरी कहानी है और मेरी फ़िल्म है, मैं इसे बदलना नहीं चाहता," अग्निहोत्री ने उस समय का किस्सा सुनाया। "एक फ़िल्म का किसी दर्शक पर इतने हद तक प्रभाव नहीं होता। हर व्यक्ति की अपनी एक सोच और समझ होनी चाहिए। क्लाइमैक्स को लेकर बड़ा मुद्दा बन गया था। पर फिर वो सुलझ गया और फिर से मूल क्लाइमैक्स ही रखा गया।

"मुझे लगता है मेरे पिता को मेरा प्रतिनिधित्व करना पड़ता था क्योंकि मेरी उम्र कम थी। ये बड़ी दुःख की बात थी के ऐसे हादसे हुए," उन्होंने कहा।

एक बातचीत में एल वि प्रसाद के बेटे ए रमेश प्रसाद ने याद दिलाया था के कैसे राज कपूर ने फ़िल्म प्रिव्ह्यु पर निर्माता को क्लाइमैक्स बदलने के लिए कहा था। तब उन्होंने कहा, "सबसे बड़ी प्रेम कहानियाँ शोकांत ही हैं।" फिर क्या था, बात वहीं खत्म हो गई।

अपने बेटे तनुज के लिए अग्निहोत्री ने फ़िल्मों से ब्रेक लिया था, पर उन्होंने कभी इंडस्ट्री नहीं छोड़ी और अभी भी काम कर रही हैं, क्योंकि वे इस कला को बेहद चाहती हैं। "मैं हर दिन सुबह काम पर जाने के लिए उत्साह के साथ उठती थी," उन्होंने कहा। "मैं दिन में १८ घंटे काम करने की आदी थी। मुझे काम करने की आवश्यकता नहीं थी। मैं सधन परिवार से थी। मैंने फिर भी इसे चुना क्योंकि मैं इसे चाहती थी। मुझे लगता है जब आप में किसी चीज़ के लिए आग है, तो आपको उसे करना चाहिए।

"ऐसा भी समय था जब मैं पूरी तरह थक जाती, पर ऐसा एक बार भी नहीं हुआ के अगले दिन मैं वक़्त पर नहीं पहुंची। मुझे समय की पाबंदी के लिए जाना जाता था। मेरे काम का आनंद उठाने के साथ मैंने उसका आदर भी किया। मुझे लगता है ये सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण है के आप जो कर रहे हैं उसे करने का आनंद ले सकें।"

एक क्रियाशील रचनात्मक व्यक्तित्व की धनि अग्निहोत्री ने अपने खाने के पसंद को एक सफल व्यवसाय में बदला। पोलैंड में अपनी बहन के साथ वे पाँच रेस्टोरेंट चलाती हैं, अपने व्यवसाय के हर छोटी चीज़ में उतना ही उत्साह दर्शाती हैं और ग्राहकों को चिकन मखनी, गोवा मैंगो प्रॉन करी और बीफ रोगनजोश जैसे डिशेस का स्वाद चखाती हैं।

उनके रेस्टोरेंट्स का नाम बॉलीवुड रखा गया है और वहाँ की रेसिपीज उनके द्वारा तैयार और शेफ और स्टाफ उनके द्वारा प्रशिक्षित किए गए हैं। "हम हमारा खाना प्यार के साथ परोसते हैं। सेट पर भी मैं खाना लाना पसंद करती थी और सब मुझे अन्नपूर्णा कहा करते थे, इसलिए मेरे लिए ये स्वाभाविक है," उन्होंने हँसते हुए कहा। "मैं अन्नपूर्णा की भूमिका निभा रही हूँ।"

पर उनके लिए अभिनय पहला प्यार है और इस बारे में उनका कहना है, "मैंने अभी तक सन्यास नहीं लिया है। अभिनय मेरा पहला प्यार है और इंडस्ट्री के लोग मेरे साथ कितने प्यार से रहें हैं। जब भी मैं ब्रेक के बाद वापस आयी हूँ, उन्होंने दिल से मेरा स्वागत किया और दर्शकों ने भी मुझे सराहा, इसलिए फ़िल्मों में काम ना करने का कोई कारण नहीं है।"

अगर समय मिले तो भविष्य में रतिजी बड़े परदे पर या वेब-सीरीज़ में भी नज़र आ सकती हैं।