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दिल्ली के फ़िल्म प्रेमियों के लिए हैबिटैट फेस्टिवल का नज़राना

नई दिल्ली में चल रहे हैबिटैट फ़िल्म फेस्टिवल में ऐसी फ़िल्मों का नज़राना पेश किया जा रहा है जिसे फ़िल्म प्रेमियों को चूकना नहीं चाहिए।

१० दिवसीय हैबिटैट फ़िल्म फेस्टिवल २०१९ का १४ वा संस्करण देश की राजधानी में शुरू हो चुका है। भारतीय सिनेमा के लिए एक बेहतरीन मंच माने जानेवाले इस फ़िल्मोत्सव की शुरुवात अश्विन कुमार की बहुचर्चित फ़िल्म नो फादरस इन कश्मीर (२०१९) से हुई। देवाशीष मखीजा की भोंसले से २६ मई को इस फ़िल्मोत्सव की समाप्ति होगी।

इस फ़िल्मोत्सव में भारत के अलग अलग प्रांतो में बनी फ़िल्में दिखाई जा रही हैं। साथ ही फ़िल्म के कास्ट और क्रू के साथ फ़िल्म के बाद चर्चासत्र का भी आयोजन किया गया है।

इस फेस्टिवल में आगे दिखाई जा रही फ़िल्मों की जानकारी आपको दे रहे हैं।

भोर, निर्देशक – कामाख्या नारायण सिंह, हिंदी
१९ मई, शाम ६:३० बजे 

बिहार के मुसहर जैसे गरीब और पिछड़े समाज की एक लड़की बुधनी पढ़ना चाहती है। पर ये उतना आसान नहीं, क्योंकि उसके उम्र की लड़कियों पर घर परिवार और समाज की ओर से शादी का दबाव बढ़ते रहता है। पढाई की इच्छा और शादी के दबाव के बीच फसी बुधनी अपनी हार मानने लगती है। पर सुगन का रिश्ता उसके लिए एक उम्मीद बनकर आता है, क्योंकि वो उसे पढ़ने के लिए मदद करने को तैयार है। पर शादी के बाद उसे एक और परेशानी का सामना करना पड़ता है, वो है शौचालय का न होना। अब उसे सिर्फ़ अपनी पढाई के लिए नहीं बल्कि स्वच्छता के लिए भी लड़ना है।

हामिद, निर्देशक – एजाज़ ख़ाँ, हिंदी और उर्दू
२० मई, शाम ६ बजे

आठ वर्ष के हामिद को पता चलता है के ७८६ अल्लाह का नंबर है और इस नंबर को डायल कर वो अल्लाह से बात करने का प्रयास कर रहा है। वो अपने पिता से बात करना चाहता है, क्योंकि उसकी माँ ने उसे बताया है के उसके पिता अल्लाह के पास गए हैं। एक दिन इस फोन का जवाब मिलता है और कश्मीर के माहौल में बिखरे हुए दो शख्स एक दूसरे के साथ अपनी कमियों को पूरा करने में जुट जाते हैं।

नामदेव भाऊ – इन सर्च ऑफ़ सायलेंस, निर्देशक – दार गई, हिंदी और मराठी
२३ मई, रत ८.३० बजे

६५ वर्षीय टैक्सी चालक मुंबई के शोर शराबे से परेशान अब बात करना ही छोड़ देता है और सब कुछ छोड़कर सायलेंट वैली की तलाश में निकलता है। वो ऐसे जगह की तलाश में है जहाँ सचमुच शून्य डेसीबल आवाज़ हो। उसके सफर में वो एक १२ वर्ष के बच्चे से मिलता है जो लाल महल की तलाश में निकला हुआ है।

युवर्स ट्रुली, निर्देशक – संजोय नाग, हिंदी
२३ मई, शाम ४.४५ बजे

कोलकाता के रोजमर्रा के लोकल ट्रेन के सफर में एक ५० से अधिक उम्र की महिला को रेल अनाउंसर की आवाज़ से प्यार हो जाता है। किसी के साथ की आवश्यकता और किसी भी उम्र में प्यार की खोज अनिश्चित जगह पर पूरी हो सकती है इसकी कहानी युवर्स ट्रुली में दर्शाई गई है। एनी ज़ैदी की किताब लव स्टोरीज़ #१ टू १४ की एक कहानी पर ये फ़िल्म आधारित है।

दीठि, निर्देशिका – सुमित्रा भावे, मराठी
२४ मई, सुबह ११ बजे

रामजी एक लोहार है, जो महाराष्ट्र के वारकरी संप्रदाय का उपासक है, जो विठ्ठल भगवान से मिलने आलंदी से पंढरपुर पदयात्रा करते हैं। उस पर दुःख का पहाड़ गिरता है जब उसका एकलौता बेटा नदी में बह जाता है। रामजी न सिर्फ़ दुखी है बल्कि वो अपने भगवान से गुस्सा भी है, जिसकी वो इतने वर्षों से भक्ति कर रहा है।

वो और उसके दोस्त इस दुःख से उभरने की कोशिश कर रहे हैं। बछड़े को जन्म देती हुई गाय को मदद करते हुए उसे पता चलता है के जन्म और मृत्यु एक दूसरे से अलग नहीं। इस तरह मृत्यु और जीवन, दुःख और आनंद के सत्य को ये कहानी दर्शाती है, जहाँ दोनों विरुद्ध बातें एक में समाकर निराकार बन जाते हैं।

नगरकीर्तन, निर्देशक – कौशिक गांगुली, बंगाली
२६ मई, शाम ४.४५ बजे

परिमल एक लड़का बन कर ही पैदा हुआ था, पर उसके अंदर एक अलग पहचान छुपी हुई है। यहाँ से बाहर निकलने का एक ही रास्ता था, के अपने घर-परिवार, पडोस से दूर ऐसी जगह वो भाग जाए जहाँ उसे अपरिचित ना लगे। इसी तलाश में परिमल कोलकाता पहुंचता है, जहाँ उसे तृतीयपंथी सहारा देते हैं। परिमल से वो पुन्ति बन जाता है। वहाँ वो मधु से मिलता है और उसे प्यार हो जाता है। जैसे जैसे मधु पुन्ति के शारीरिकता के बारे में जानने लगता है, उसे अजीब लगता है के कैसे वो पुरुष के देह में स्त्री को चाहने लगा है। क्या ऐसा हो सकता है? क्या सामाजिक बंधनो में उनका प्यार सफल हो पाएगा?

भोंसले, निर्देशक – देवाशीष मखीजा, मराठी और हिंदी
२६ मई, शाम ७ बजे

भोंसले एक वयस्क सब-इन्स्पेक्टर है जो अपनी इच्छा विरुद्ध अभी अभी रिटायर हुआ है। उसे अपनी सेवा में और एक्सटेंशन चाहिए था। पर वो मर रहा है। भोंसले ऐसे दुर्लभ पुलिसवालों में से एक है जो इंसान के हालात को कानून से अधिक अहमियत देते हैं। यही उसकी सबसे बड़ी ताकत है और यही उसकी कमज़ोरी भी।

एकाकी जीवन जीनेवाले भोंसले को अब यकायक युवा सीता और छोटे लालू का साथ मिलता है, जो उसकी चॉल में उसके पडोसी हैं। परप्रांतीय होने की वजह से लोकल राजनीतिक गुंडा विलासराव उन्हें परेशान करते रहता है और ये दोनों भोंसले की मदद लेते हैं।