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नोटबुक गाना 'लैला' – ध्वनि भानुशाली की आवाज़ में मधुरता है पर यह आशावादी गाना निराश करता है

ऑर्केस्ट्रल संगीत के धीरे धीरे बढ़ाव के बावजूद 'लैला' गाना पैटर्न बनते जा रहे रिदम के शैली को अपनाता है।

विशाल मिश्र द्वारा संगीतबद्ध किया गया नोटबुक फ़िल्म का 'लैला' गाना ध्वनि भानुशाली की आवाज़ में एक रोमैंटिक आशावादी गाने के तौर पर सामने आता है।

गाने में दिखाए गए कश्मीर के लेक हाऊस के दृश्य आपका मन मोह लेते हैं। इस लेक हाऊस को बच्चों के स्कुल के लिए भी इस्तेमाल किया गया है।

गाने में खूबसूरत मेलडी है और इसके दृश्य भी मनमोहक हैं, पर फिर भी इसमें गंभीर मोड़ की कमी नज़र आती है।

प्रनूतन बहल की फिरदौस और ज़हीर इक़बाल के कबीर के बीच बढ़ रहे प्रेम के आशावाद और उत्साह को इस गाने में दर्शाया गया है। कबीर फिरदौस को एक नोटबुक के ज़रिये कुछ नोट्स भेजते रहता है। कबीर को मिलने के लिए बेताब फिरदौस के सपने को शब्दों में ढालते बोल यहाँ नज़र आते हैं। कबीर भी इसी हालात से गुजरते दिखता है।

गाने में सुखद अनुभव अवश्य है। गायिका ध्वनि भानुशाली ने इसे संतुलित रूप से गाया है। वायलिन कोरस के साथ बढ़ते बढ़ते गाने में ऑर्केस्ट्रल चढ़ाव देखने मिलता है, जो आवाज़ के साथ खूबसूरतीसे मिल जाता है। पर ये परिचित शैली का गाना है जो ज़्यादा उत्साहित नहीं करता।

गाने के बोल साधारण हैं जिससे यह किसी साधारण गाने की भांति लगता है। मुखड़े की पंक्तियाँ कई बार दोहराई जाती हैं, मगर शायद इसके अलावा कोई चारा नहीं था।

नोटबुक का निर्देशन नितिन कक्कर ने किया है और फ़िल्म २९ मार्च को प्रदर्शित हो रही है। गाना यहाँ देखें।