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रमेश भाटकर (अगस्त १९४९ – 4 फरवरी २०१९) – भारतीय टेलीविजन के ओरिजिनल स्टार कॉप

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सी आय डी के ए सी पि प्रद्युम्न से पहले रमेश भाटकर टेलीविजन के पसंदीदा पुलिस इंस्पेक्टर थे। हैलो इंस्पेक्टर, दामिनी, कमांडर और तीसरा डोला जैसी लोकप्रिय धारावाहिक में वे मुख्य भूमिका में थे।

Suparna Thombare

नाटक, टेलीविजन, फ़िल्म्स जैसे तीनो माध्यमों में सफल रहे ज्येष्ठ अभिनेता रमेश भाटकर का सोमवार को मुंबई के सेंट एलिज़ाबेथ हॉस्पिटल में देहांत हुआ। पिछले एक वर्ष से वे कैंसर से झूझ रहे थे।

उनके पश्चात उनकी पत्नी बॉम्बे हाई कोर्ट की जज मृदुला भाटकर तथा बेटा हर्षवर्धन हैं।

रमेश भाटकर उन चंद अभिनेताओं में से हैं जो पिछले चार दशकोंसे नाटक, टेलीविजन, फ़िल्म्स में सफलतापूर्वक काम कर रहे थे।

उन्होंने 55 से भी अधिक नाटक, १०० फ़िल्म्स तथा ३० टेलीविजन शोज़ में काम किया। इससे उनकी प्रतिभा और काम की व्यापकता समझ में आती है। इतने वर्षों से उनके पास जो भी अच्छा काम आया उसे स्वीकार कर वे लगातार काम कर रहे थे।

रमेश भाटकर का परिवार फ़िल्मो से जुड़ा हुआ था। उनके पिता स्नेहल भाटकर प्रसिद्द गायक तथा संगीतकार थे। राज कपूर और मधुबाला अभिनीत नील कमल (१९४७), सुहाग रात (१९४८) और छबीली (१९६०) जैसी फ़िल्मों को उन्होंने संगीत दिया था। १९४० से १९६० के दशक तक वे फ़िल्मों के लिए संगीत देते रहे।

पिता स्नेहल भाटकरने बेटे रमेश को वाओलिन सीखने के लिए प्रेरित करने का काफ़ी प्रयास किया तथा उन्हें गाने के क्लासेस के लिए लक्ष्मीकांत–प्यारेलाल जोड़ी के प्यारेलाल के यहाँ भेज दिया। पर संगीत में उन्हें विशेष रूचि नहीं थी और कुछ ही महीनों में वे संगीत क्लास से ऊब गए।  

अपने जवानी के दिनों में उन्हें खेल में रूचि थी और वे कॉलेज के तैराकी स्क्वैड में भी थे। पर एक्टिंग से जुड़ने के बाद बाकी सारी चीज़ें पीछे छूट गयीं। नाटक उनका पहला प्यार बन गया और उनके अंतिम क्षणों तक ये प्यार निरंतर चलता रहा।

मराठी फ़िल्मों में चाँदोबा चाँदोबा भागलास का (१९७७) ये उनकी पहली फ़िल्म थी। उसके बाद अष्टविनायक (१९७८), दुनिया करि सलाम (१९७९), आपली माणसं (१९७९) और माहेरची माणसे (१९८४) ऐसी फ़िल्मों का सिलसिला शुरू हुआ।

पर उन्हें विशेष सफलता हासिल हुई १९९१ में आयी मराठी फ़िल्म माहेरची साड़ी से। हालाँकि उनकी सह कलाकार अलका कुबल को इस फ़िल्म के लिए कई पुरस्कार और लोकप्रियता मिली, पर रमेश भाटकर को भी उनके अभिनय के लिए विशेष सराहना मिली।

उन्होंने कुछ हिंदी फ़िल्मों में भी अभिनय किया मगर उनकी ज़्यादातर फ़िल्मे मराठी में ही थीं। इसकी वजह ये भी थी के हिंदी फ़िल्मों में उन्हें ज़्यादातर छोटी भूमिकाओं के लिए ही बुलाया जाता, जिससे उनके अभिनय क्षमता को आज़माने का उन्हें मौका नहीं मिलता।

उनकी आखरी हिंदी फ़िल्म द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर (२०१९) में उन्होंने महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चौहान की भूमिका निभाई थी, पर यहाँ भी उनकी भूमिका विशेष महत्वपूर्ण नहीं थी।

हिंदी फ़िल्मों में उनकी बड़ी भूमिकाएं निर्देशक दीपक बलराज विज की फ़िल्मों में थी, पर दुर्भाग्य से वे फ़िल्मे फ्लॉप हुईं।

पर टेलीविजन की दुनिया में १९९० के दशक में उनकी भूमिकाओंने उन्हें घर घर पहुंचा दिया। दस वर्षों से अधिक चल रही धारावाहिक सीआईडी में एसीपी प्रद्युम्न की भूमिका में अभिनेता शिवाजी साटम लोकप्रिय कॉप बननेसे पूर्व रमेश भाटकर टेलीविजन के लोकप्रिय कॉप थे। हैलो इंस्पेक्टर (१९९०, मराठी) ये उनकी पहली धारावाहिक थी। उसके बाद आयी दामिनी (मराठी) भी उतनी ही लोकप्रिय हुई। दोनों धारावाहिक दूरदर्शन पर आये थे। कमांडर (१९९२, हिंदी, झी टीवी) तथा तीसरा डोला (१९९८, दूरदर्शन सह्याद्रि) ये उनके लोकप्रिय टेलीविजन शोज़ थे।

झी टीवी के कमांडर शो से गैर मराठी दर्शकों में भी वे काफ़ी लोकप्रिय हुए थे, जो मुकाम उन्हें हिंदी फ़िल्मों से दुर्भाग्यवश नहीं मिल पाया था।

टेलीविजन ने भले उनको लोकप्रियता दी, पर नाटक ने उन्हें कई सम्मान दिए। नाटक उनका प्यार था और वे उससे हमेशा जुड़े रहे। १९८६ में आये मुक्ता नाटक के उनके काम को काफ़ी सराहना मिली, पर उन्हें असली पहचान मिली वसंत कानेटकर लिखित नाटक अश्रुंची झाली फुले (आँसू बन गए फूल) से। १९७६ से शुरू हुए इस नाटक में डॉ काशीनाथ घाणेकर मुख्य भूमिका निभाते थे। पर 28 वर्ष तक चलते रहे इस नाटक में घाणेकर ने साकार की हुयी भूमिका में भाटकर ने बेहद लोकप्रियता और सम्मान हासिल किये।

इस नाटक की सफलता के बाद रमेश भाटकरने पीछे मुड़कर नहीं देखा। १९८० और १९९० के दशक के कई महत्वपूर्ण नाटकों में रमेश भाटकर मुख्य भूमिका निभा रहे थे।

उनके संस्मरणीय भूमिकाओं में देण्याऱ्याचे हाथ हज़ार, उघडले स्वर्गाचे दार, षड्यंत्र, केव्हा तरी पहाटे, अखेर तू येशिलच, राहु केतु, द बॉस – सूत्रधार और ययाति जैसे नाटक शामिल हैं।

स्टाइलाइज़्ड मूंछें और गहरी आवाज़ के धनि रमेश भाटकर को मराठी रंगमंच और स्क्रीन पर हमेशा याद किया जायेगा।

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