"फ़ोन बजना बंद ही नहीं हो रहा है," विजय वर्माने कहा। ज़ोया अख़्तर की गली बॉय (२०१९) में मोईन के किरदार में की हुयी बेहतरीन अदाकारी से अभिनेता विजय वर्मा आख़िरकार स्पॉटलाइट में आ गए हैं। वर्सोवा के अपने शांत अपार्टमेंट में शूटिंग और इंटरव्ह्यूज़ के बिच समय निकाल कर उन्होंने सिनेस्तान से बातचीत की।
"मैं इस नयी पहचानसे जुड़ने की कोशिश कर रहा हूँ," उन्होंने कहा। अपनी पहली फ़िल्म चिट्टगोंग (२०१२) से धीरे धीरे वर्माने अपनी पहचान बनाना शुरू किया था। पिंक (२०१६) के क्रूर खलनायक के रूप में अपनी छाप छोड़ने के बाद वे मॉनसून शूटआउट (२०१७) में मुख्य भूमिका में सामने आये थे।
गली बॉय में उन्होंने मोईन के किरदार को निभाया, जो मुराद का कठोर और चालाख दोस्त है। उन्होंने किरदार को इतनी खूबीसे निभाया के जिससे वो रणवीर सिंह के किरदार का कवच बना है।
"मोईन के साथ कुछ नयी चीज़ें सामने आती हैं, मैं नहीं चाहता था के वो ऐसी चीज़ें हो जिसकी हमें अपेक्षा ही न हो," अपने किरदार के बारे में कहते हुए वर्माने कहा।
पर उन्होंने याद दिलाया के इस किरदार का जादू उनके और रणवीर के बीच के सूझबूझ पर भी निर्भर था। "फ़िल्म के दौरान हमारे बीच बातचीत होती रही। उन्होंने मुझे सिटी ऑफ़ गॉड (२००२) देखने की सलाह दी थी। उन्होंने कहा लील ज़ी ही मोईन है और वो एक सही सुझाव था। उनकी सिनेमा क्षेत्र की जानकारी से मैं प्रभावित हुआ," वर्माने कहा।
वर्मा के लिए गली बॉय की सफलता ही एकमात्र बात नहीं है जो उनके पक्ष में है। इम्तियाज़ अली की वेब-सीरीज़ में भी वे अहम् भूमिका निभा रहे हैं और अनुराग कश्यप की अगली फ़िल्म में भी वे काम कर रहे हैं।
"मैं उस पार पहुंचने में कामयाब रहा हूँ जहाँ मैं जाने माने लोगों के साथ काम कर रहा हूँ और उनके साथ उठने बैठने लगा हूँ," उन्होंने उत्साहसे कहा।
आशा करते हैं के उनकी ये भागदौड़ ऐसी ही चलती रहे। उनसे हुयी बातचीत के कुछ अंश प्रस्तुत कर रहे हैं।
हम पिछली बार मानसून शूटआउट के प्रमोशन्स पर मिले थे और ऐसा लगता है के वो साल आपके लिए काफ़ी अच्छा रहा।
मैंने गली बॉय दिसंबर में साइन की और जनवरी से मैंने फ़िल्म की शूटिंग शुरू की। तबसे मैंने कुछ प्रोजेक्ट्स शूट किये हैं। ये ज़रूर काफ़ी व्यस्त समय था। मैंने २०१८ में काफ़ी काम किया है। जो बीज मैंने २०१८ में बोये हैं शायद मुझे उसका फल बाद में मिले।
आपके स्ट्रगल को देखते हुए जो प्रशंसा आपको मिल रही है उससे आप अच्छा महसूस कर रहे होंगे।
हाँ, ये काफ़ी उत्साहवर्धक है। पर मैं इस तरह की पहचान का आदि नहीं हूँ। मैं इस समय थोड़ा खोया हुआ हूँ और इसे समझने की कोशिश कर रहा हूँ। पर मैं बहुत खुश हूँ।
मोईन के बारे में आपको क्या बताया गया था?
मुझे पहली बार कास्टिंग टीमने बताया। तब उन्होंने मेरे मेकैनिक और साथ ही एक ड्रग डीलर होने पर ज़्यादा ध्यान दिया था। लेकिन जब मैं ज़ोया को मिला और मुझे अंतिमतः चुन लिया गया, मुझे पता चला के इस किरदार के साथ और भी कई चीज़े जुडी हुयी हैं।
ऊपरी तौर पर वो एक गराज चलाता है, पर उसके और भी कई धंदे हैं। ज़्यादातर वो कानून के ख़िलाफ़ जानेवाली चीज़े ही करता है। सब उसकी रोज़ी रोटी के लिए करता है, बच्चोंसे काम करवाना उसके लिए कोई बड़ी बात नहीं है। समाजसेवा के उसके अपने तरीके हैं।
आपके संदर्भ क्या थे?
मोईन फ़िल्म में थोड़े थोड़े समय पर आता है और हर वक़्त उसके किरदार के बारे में नयी चीज़ें पता चलती हैं। मैंने किरदार में एक सुसूत्रता लाने की कोशिश की। वो दो अलग स्वभावों का मिश्रण है। उसमे एक दिखावागिरि है और साथ ही कुछ चीज़ों के बारे में वो सोचता भी है।
शारीरिक तैयारीसे ज़्यादा मुझे दिमागी तैयारी करनी पड़ी। पर एक बार आपने यह कर दिया तो बाहरी रूप में मेकअप और वेशभूषासे किरदार को वास्तविकता मिलती है, जिसे बड़ी खूबी से किया गया।
पर आपने इस स्वभाव को रणवीर सिंह के सामने कैसे लाया? क्योंकि जब वे काम करते हैं तो ज़्यादातर पूरे माहौल पर हावी हो जाते हैं। साथ ही ऐसे आप दुबले पतले हैं, तो धारावी के एक ड्रग डीलर मेकैनिक की शारीरिकता को आपने अपने आप में कैसे लाया?
मुझे स्क्रिप्ट से ही मेरा स्वभाव और रवैया मिल गया था। वो किरदार और उसकी भाषा में वो लिखा गया था। हाँ, रणवीर सिंह पर हावी हो सके ऐसा दिखना मुश्किल ज़रूर था। ज़ोयाने मुझे बताया के मोईन सबसे धैर्यशील होना चाहिए, इस कहानी का सबसे गंभीर किरदार।
आपको ये भी देखना है के रणवीर स्क्रिप्ट में कहॉं उभर कर आते हैं। वे मुराद थे, जिसे आसानी से प्रभावित किया जा सकता है। स्क्रिप्ट में सारी सूचनाएं दी गयी थीं और सभी कलाकार इतने प्रोफेशनल और समझदार थे के उन्होंने उन सूचनाओं का पालन किया।
हमने चर्चा की थी के मोईन हमेशा छोटे मोटे ही काम करेगा, पर उसका अंदाज़ हमेशा ऊँचा ही रहेगा, फिर उसके पास चाहे जितने भी पैसे हों या और कुछ। वो उसके आसपास के किरदारों से उम्र में थोड़ा बड़ा भी होगा।
ज़ोया तो ज़ोया है, वे हर चीज़ खुद देखती हैं। हम कैसे दिख रहे हैं, कैसे बोल रहे हैं, वे सब का ध्यानपूर्वक निरिक्षण कर रही थीं। उन्हें स्क्रिप्ट सभी अंगों से पता थी।
उस भाषा को कैसे बोला जाये और कैसे इस्तेमाल किया जाये इसकी कोई प्रक्रिया थी?
सिर्फ़ ऐसा नहीं के वो सुनने में अच्छा लगे पर उसे कैसे कहना है वो भी ज़रूरी था। तब हम विजय मौर्या से मिले और वहाँ के रैपर्स एम सी अल्ताफ, राहुल सिसके से भी मिले। वे डबिंग सस्टुडिओ में भी हमारे साथ थे, ताकि हम सही ढंगसे उसे बोल पाए।
मैंने भी कुछ ऐसे ५० शब्द याद कर लिए थे जो स्क्रीन पर नहीं थे, पर मेरे किरदार के साथ थे, भले ही किसी और किरदार के साथ ना हों।
इस किरदार पर १९७० के दशक का प्रभाव लग रहा था, जैसे अमिताभ बच्चन की तरह चलना या जैकेट में हाथ डालना। इसके पीछे क्या सोच थी?
मुझे लगता है व्यक्तिशः मैं उसी दौर के आसपास का ही बंदा हूँ। मुझे विंटेज और रेट्रो काफ़ी पसंद हैं। मुझे लगता है तब दुनिया बहुत ज़्यादा आकर्षक थी। उस दौर में ज़्यादा सहजता और गहराई हुआ करती थी।
इस किरदार को समझने में आपने कितने समय तक वर्कशॉप्स किये?
हमने कुछ वर्कशॉप्स अतुल मोंगिया के साथ किये और कुछ उन लड़कों के साथ जब रणवीर भी हमारे साथ थे। रीडिंग के दौरान ही ज़ोयाने सबको उनके आपसी सबंध और रवैये के बारे साफ़ तौर पर बता दिया था। यहीं हमने कौन क्या है और किसका रुतबा क्या होगा इसकी चर्चा की थी।
मोईन के साथ कुछ चीज़ें नए सिरेसे पता चलते रहती हैं। मैं नहीं चाहता था के वो ऐसी चीज़ें हों जिसकी किसीने कोई अपेक्षाही ना की हो। मैं चाहता था के उसके बदलते रवैये की झलक उसमे दिखती रहे ताकि दर्शकों को अचानक कोई बड़ा धक्का ना लगे।
मुराद के साथ जो आखरी दृश्य है वो काफ़ी भावुक है। आप दोनों के बिच वैसे रिश्ते को पाने के लिए आपको कितना समय लगा?
हमने शूटिंग के दिन भी उस दृश्य की कोई रिहर्सल नहीं की। मुझे नहीं पता था के वे उस दृश्य में किस तरह से सामने आएंगे।
मोइन के साथ उसके लिए कभी कोई खड़ा नहीं हुआ था। मैं उन्ही विचारों में था। वे [रणवीर सिंह] अपनी एनर्जी साथ लेकर आये, जहाँ वे मेरे लिए सचमुच चिंतित है।
मैं एक घंटे के लिए लॉकअप में था और रणवीर अपनी जगह शांत, कान में इअर फोन डाले बैठे थे। उन्होंने सबको सेट से बहार कर दिया था।
मुझे लगता है उन्होंने देखा के मोईन के साथ क्या हुआ है और उसके बाद सारी बातें होती गयी। उनकी आँखों में मेरे किरदार के लिए इतनी वास्तविक हमदर्दी थी के मुझे भी उसका अहसास अपने आप होने लगा।
उनकी आँखों में जो हमदर्दी मैंने देखि थी, वो सचमुच उस दृश्य में रो पड़े थे। मैं उन्हें संभालना चाहता था, पर मोईन ऐसा नहीं कर सकता था। वो एक अलग ही दृश्य था।
रणवीर सिंह अभी ऐसे मुकाम पर हैं जहाँ कई कलाकार उन जैसा बनने की सोचते होंगे। वो क्या है जो उन्हें दूसरों से अलग करता है? आप इससे पहले नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी के साथ काम कर चुके हैं। दोनों एक तरह से मेथड एक्टर हैं। क्या फर्क है दोनों में?
मैं कहूंगा के दोनों में कुछ समानताएं हैं। एक तो ये के दोनों को वो क्या कर रहे हैं उसकी बहुत अच्छी समझ है। उनकी कला पर उनकी बहुत अच्छी पकड़ है। दूसरी चीज़ है के दोनों सच की खोज में रहते हैं। दोनों किरदार के साथ ईमानदार रहना चाहते हैं। वे कभी झूठी प्रतिक्रिया देने की कोशिश नहीं करते। उस समय वे वही रहते हैं। उनके काम के प्रति उनकी निष्ठा एक जैसी ही है।
अगर कुछ चीज़ें काम नहीं कर रही, तो रणवीर कहेंगे के 'ऐसा करके देखो'। फिर दूसरे इंसान को स्वयं उसका एहसास हो जाता है। इस तरहा से काम और बेहतर होता है।
फ़िल्म के दौरान हमारे बीच बातचीत होती रही। उन्होंने मुझे सिटी ऑफ़ गॉड (२००२) फ़िल्म देखने की सलाह दी थी। उन्होंने कहा लील ज़ी ही मोईन है और वो एक सही सुझाव था। उनकी सिनेमा क्षेत्र की जानकारी से मैं प्रभावित हुआ था।
ज़ोया अख़्तर बतौर निर्देशिका कैसी है?
ज़िंदगी ना मिलेगी दोबारा (२०११) और दिल धड़कने दो (२०१५) किसी एक विशिष्ट दुनिया और व्यवस्था की कहानियाँ हैं मगर वो भी अपने आप में समृद्ध करनेवाली फ़िल्में हैं। वे अपनी कहानी और उनके किरदारों के साथ पूरा न्याय करती हैं। एक अभिनेता खास तौर पर उसी चीज़ को देखता है।
एक फैन के तौर पर आप हमेशा सोचते हैं के इन्होंने बाकि कलाकारों के साथ बेहतरीन काम किया है और आप भी उनकी फ़िल्मोग्रफ़ी का हिस्सा बनना चाहते हैं।
वे आपको सुनने के लिए उत्सुक रहती हैं। जब आप कुछ कहते हैं तो वो सोच कहॉं से आयी है उस बारे में वे काफ़ी जागरूक होती हैं। इस तरह से वे आपकी परफॉर्मेंस बनाती नहीं पर उसे आकार देती हैं। वे आपकी परफॉर्मेंस को आज़ादी देती हैं और फिर बताती हैं इसमें से उन्हें क्या नहीं चाहिए। वे आपके परफॉर्मेंस को ढालती नहीं, बल्कि उसे निखारते रहती हैं। आपके परफॉर्मेंस को आकर देने की उनकी प्रक्रिया बेहद रोचक है।
क्या ऐसा कोई दृश्य था जो आप चाहते थे की फ़िल्म में रहे लेकिन उन्होंने वो नहीं रखा?
नहीं, मेरे सभी दृश्य फ़िल्म में हैं। कुछ भी हटाया नहीं गया। कुछ दृश्यों को छोटा किया गया है, पर उसकी वजह मैं जानता हूँ।
एक दृश्य जो फ़िल्म में नहीं था वो है लॉकअप का दृश्य। एडिट में उसे निकला गया था। उस बारे में उन्होंने मुझसे बात की थी। उन्होंने कहा, 'फ़िल्म में आपका काम बहुत अच्छा हुआ है और आपके सभी दृश्य रखे गए हैं, सिवाय एक के।' मैंने देखा वो कौनसा दृश्य है और पता चला के ये वो दृश्य था। मुझे वो दृश्य याद नहीं था, इस दृश्य का मकसद भी कुछ याद नहीं था, पर मुझे याद था के रणवीर के साथ ये काफ़ी निजी और भावुक दृश्य था। मुझे लगा के वो क्षण काफ़ी खास है और मैं उसे देखना पसंद करूँगा। मैंने उन्हें उस बारे में बताया। उन्होंने मुझे बताया के उनके लिए वैसा करना मुश्किल है।
पर जब उन्होंने कुछ फोकस स्क्रीनिंग्स रखी, जावेद साहब [अख़्तर] ने उन्हें उस दृश्य को रखने का सुझाव दिया।
पिछले दो वर्ष में, पिंक और गली बॉय के बाद, अब क्या महसूस करते हैं?
चुनने की प्रक्रिया हमेशा मुश्किल होती है। विचार प्रक्रिया और निर्णय लेना दोनों स्तर पर मुश्किलात आते ही हैं। आप तभी चुन सकते हैं जब आपके पास चुनने के लिए विकल्प हो। मैं अभी इस स्थिति में हूँ के मैं निर्देशकों के पास पहुँच सकता हूँ और निर्देशक भी मेरे पास आ सकते हैं।
आगे क्या क्या प्रोजेक्ट्स हैं?
मैं इम्तियाज़ अली के साथ एक वेब-सीरीज़ शूट कर रहा हूँ। उन्होंने अभी तक अधिकृत कोई भी घोषणा नहीं की है, पर शायद जल्द ही करेंगे। वायकॉम 18 इसका निर्माण कर रहे हैं।
मैंने बमफाड़ नामक फ़िल्म की शूटिंग पूरी कर ली है। अनुराग कश्यप इस फ़िल्म को प्रस्तुत कर रहे हैं। मैं हमेशा उनके साथ काम करना चाहता था, पर वे हमेशा मेरी फ़िल्मों के निर्माता या प्रस्तुतकर्ता रहे हैं। निर्देशक कभी नहीं।
मैं उस पार पहुंचने में कामयाब रहा हूँ जहाँ मैं जाने माने लोगों के साथ काम कर रहा हूँ और उनके साथ उठने बैठने लगा हूँ। मैंने मंटो (२०१८) फ़िल्म में भी एक बहुत छोटी भूमिका की है, क्योंकि मैं उस कहानी का हिस्सा बनना चाहता था।