इंडस्ट्री के जग्गू दादा ने विस्तृत बातचीत में अपने आने वाले प्रोजेक्ट्स, बेटे टायगर श्रॉफ और रोमिओ अकबर वॉल्टर (२०१९) फ़िल्म के अपने किरदार के बारे में बताया।
मैं हर किसी का प्रतिबिम्ब हूँ – जैकी श्रॉफ
मुम्बई - 09 Apr 2019 9:00 IST
Updated : 12 Apr 2019 22:36 IST
Sonal Pandya
वरिष्ठ अभिनेता जैकी श्रॉफ का २०१९ वर्ष काफ़ी व्यस्त है। उनके आगामी प्रोजेक्ट्स में भारत, साहो और प्रस्थानम जैसी फ़िल्मे हैं और इस समय उनकी रोमिओ अकबर वॉल्टर फ़िल्म प्रदर्शित हो चुकी है।
पिछले महीने जैकी श्रॉफ मुम्बई के जुहू विभाग के सन एन सैंड होटल में मिडिया से बातचीत करने सीधे अपने पुणे के फार्म हॉउस से आये थे, जहाँ वे केले के साथ साथ कई सारि चीज़ें उगाते हैं। हमारी बातचीत में उन्होंने पानी की कमी, नलों में प्लास्टिक का आना ऐसे कई मुद्दों के साथ साथ रॉबी ग्रेवाल की फ़िल्म पर भी बात की।
श्रॉफ ने कहा के ग्रेवाल की इस प्रोजेक्ट के प्रति निष्ठा देख कर उन्होंने इस पीरियड फ़िल्म को हाँ कर दी।
"देश को ख़ुफ़िया सूचनाओं से सज्ज रखनेवाले लोगों की कहानी बताने के हमारे निर्देशक के जूनून को देख कर मैंने ये फ़िल्म की है। बॉर्डर (१९९७) के विंग कमांडर बाजवा के बाद मुझे साक्षात हकीकत का ऐसा किरदार मिला है।"
फ़िल्म में उन्होंने रिसर्च एंड अनॅलिसिस विंग (रॉ) के हेड की भूमिका निभाई है। रॉ हमारे देश की विदेशी ख़ुफ़िया एजेंसी है, जो १९६८ में स्थापित की गई। रामेश्वर नाथ काओ इस एजेंसी के पहले डायरेक्टर थे। श्रॉफ का किरदार काओ से प्रेरित था।
"मैंने वही काम किया है जो लिखा गया था," उन्होंने कहा। "एक ऐसे इंसान की भूमिका करना जिसने ख़ुफ़िया सूचनाओं के बीज बोये थे , बहुत बड़ी बात है। तब ये बीज थे, आज वे एक बड़ा वृक्ष बन गया हैं। इन ख़ुफ़िया सूचनाओं की वजह से हम आज यहाँ आराम से बैठे हैं।"
जैकी कहते हैं के वे इस तरह की भूमिकाओं के पीछे नहीं रहते, बल्कि निर्देशक ही उनके पास भूमिकाएं लेकर आते हैं।
"एक अभिनेता के तौर पर मुझे लगता है लोग मुझमे कई सारे लोगों को देख पाते हैं। मुझमे उन्हें साईं बाबा दिखते हैं, उन्हें मुझमे मिशन कश्मीर का आतंकी नज़र आता है, कभी ये किरदार (रॉ का किरदार), तो कभी प्रस्थानम का किरदार दिखता है। यह सब निर्देशक के ऊपर निर्भर करता है। मैं निर्देशक देखता हूँ, प्रॉडक्शन हॉउस देखता हूँ और मेरे किरदार का महत्त्व देखता हूँ," श्रॉफ ने कहा।
"ऐसे किरदार आपके लिए एक और उपलब्धि है। भारतीय ख़ुफ़िया सूचना क्षेत्र की नीव रखनेवाले व्यक्तित्व को निभाना एक बड़ी बात है। मैं आशा करता हूँ के मैंने इस भूमिका के साथ न्याय किया हो, पर मैं हमारे निर्देशक और तंत्रज्ञ पर पूरा विश्वास करता हूँ इसी लिए मुझे कोई चिंता नहीं है। पर अगर कोई दोष रह गया हो तो काओ साहब के परिवार जन मुझे माफ़ करें। मैंने मेरी पूरी कोशिश की थी," उन्होंने आगे बताया।
श्रॉफ ने कहा के वे निर्देशक के अभिनेता है। निर्देशक किरदार को जो आकार देना चाहते हैं, वे उसी आकार में ढल जाते हैं।
"मैं हर किसी का प्रतिबिम्ब हूँ," उन्होंने समझाया। "मैं बाकि कुछ नहीं सोचता। मैं मुखौटा लगाकर कही नहीं जा सकता। वो मुझ पर मुखौटा चढ़ाएं, रंग लगाएं, जो चाहे करें। मैं खाली कैनवास की भांति जाता हूँ। फिर वहाँ हुसैन साहब हों, रवि राय साहब हों, या जैकी श्रॉफ। ये लोग उस खाली कैनवास पर रंग चढ़ाते रहेंगे।"
श्रॉफ ने कहा के इंडस्ट्री में करीब ४० वर्ष से काम करने के बाद आज भी उन्हें प्यार और आदर मिलता है। हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री में उनका सफर काफ़ी बेहतरीन रहा ऐसा उनका मानना है।
"आप उसे लहरों की तरह लेते हैं, तरंग उठते हैं और आप उस तरंग के साथ हो जाते हैं," उन्होंने कहा।
अपने बेटे टाइगर की सफलता से वे खुश हैं। उन्होंने कहा के ये सब भगवन की कृपा है और वे आज भी बेटे के साथ काम करने के मौके की तलाश में हैं।
६३ वर्ष की आयु में ऐसा क्या है जिससे उन्हें प्रेरणा मिलती रहती है, ऐसा पूछने पर उन्होंने झट से जवाब दिया, "ज़िंदगी। उसे जिओ। मैंने अभी अभी एक सनसेट देखा, वो फिर नहीं आनेवाला। इसलिए मैंने उस पल को जिया और सोने के समय तक मैं हर पल को जीयूंगा। कल फिर सुबह उठूंगा और फिर से जीने लगूंगा।"
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