वर्ष २०१८ इस लिए याद किया जाएगा कि दर्शकों ने स्टार अभिनेताओं के साधारण कौशल्य भरे फ़िल्मों को नकारते हुए सिर्फ़ अच्छी कहानियों में दमदार अभिनय द्वारा मनोरंजन करनेवाले फ़िल्मों का स्वीकार किया।
अच्छी कहानियां और उसकी उतनी ही दमदार लिखावट से अच्छे कलाकारों को अपनी अदाकारी का दमख़म दिखाने का मौका मिला, जिसका उन्होंने पूरा फायदा उठाया। फिर चाहे वो मुख्य भूमिका हो या सहायक भूमिका। और इन्ही भूमिकाओं से फ़िल्म का स्तर ऊपर उठाने में भी मदद मिली।
तो ये रहे सिनेस्तान के टॉप १० सर्वोत्तम अभिनेता, जिन्होंने २०१८ को यादगार बनाया।
१०. ऋषि कपूर (फ़िल्म — १०२ नॉट आउट)
ऋषि कपूर जहाँ मुल्क फ़िल्म में एक दमदार भूमिका में नज़र आये, वहीं १०२ नॉट आउट फ़िल्म में उन्होंने एक गुस्सैल बूढ़े इंसान के किरदार को वास्तविकता से जोड़ कर निभाया जिसने दर्शकों के दिल को छू लिया।
फ़िल्म में काफ़ी त्रुटियां जरूर थी पर ऋषि कपूर ने अपने चिड़चिड़े किरदार को कुछ इस तरह से निभाया के स्क्रीनप्ले की खामियों के बावजूद उनका अभिनय फ़िल्म को ऊँचे स्तर पर ले गया. वहीं उनके सह कलाकार अमिताभ बच्चन के अभिनय में जरुरत से ज़्यादा उतावलापन दिख रहा था।
एक चिड़चिड़े व्यक्ति से लेकर जीवन का भरपूर आनंद उठाते व्यक्ति तक का सफर ऋषि कपूरने जिस कमाल से दर्शाया, उससे उन्होंने उनके हर दृश्य पर मानो राज किया।
०९. राजकुमार राव (विकी, फ़िल्म — स्त्री)
राजकुमार राव ने २०१७ में बरेली की बर्फ़ी में अपनी कॉमिक और मनोरंजक अदाकारी से दर्शकों का मन जीत लिया और २०१८ में भी स्त्री फ़िल्म में उन्होंने उसी जबरदस्त टायमिंग का नज़ारा दोहराया।
कबूतर पर किया गया मोनोलॉग हो या भयभीत स्थिति में भी शाह रुख़ ख़ाँ के रोमैंटिक दृश्यों पर किया गया अभिनय हो, राजकुमार राव ने हर दृश्य में अपनी बेहतरीन टायमिंग का उदाहरण पेश किया।
पंकज त्रिपाठी, अभिषेक बैनर्जी और अपारशक्ति खुराना जैसे कलाकारों की उतनी ही अच्छी अदाकारी से उनके परफॉर्मेंस को और फायदा हुआ।
०८. विनीत कुमार सिंह (श्रवण सिंह, फ़िल्म — मुक्काबाज़)
विनीत कुमार सिंह ने इस फ़िल्म में श्रवण सिंह नामक एक कुशल बॉक्सर का किरदार निभाया, जिसने उत्तर प्रदेश के बॉक्सिंग असोसिएशन के मुख्य भगवानदास मिश्रा (जिमि शेरगिल) से दुश्मनी मोल ली है। उसे मिश्रा की गूंगी भांजी सुनयना से प्यार है, जिससे दोनों में तनाव और भी बढ़ जाता है।
विनीत कुमार सिंह एक ऐसे अंडरडॉग दिखाये गये हैं जो प्रेम, जाती और राजनीती तीनो से लड़ रहे हैं। इस किरदार में वे इस तरह से जंचे के उन्हें दूसरे किसी किरदार में कल्पना करना भी मुश्किल है।
इस खेल के लिये जो शारीरिक तैयारी और शिक्षा दिखाई गयी उसमें वे खरे लगे जिससे उनका गरम मिजाज़ी किरदार सच्चा बना। उनके पास भले ही अब तक कोई स्टार पॉवर नहीं, पर वह कमी उन्होंने अपनी सच्ची लगन और जोरदार मेहनत से भर दिया।
०७. सोहम शाह (विनायक, फ़िल्म — तुम्बाड)
सोहम शाह ने तुम्बाड फ़िल्म में विनायक का किरदार साकार किया जो सरकार की नाजायज़ औलाद है और एक बहोतही लोभी इंसान है जो अपने पिता के पूर्वजों के घर में दबे खजाने पर अपना हक़ जताता है। इस किरदार में उन्होंने गुस्सा और दया इन दोनों भावों को बड़े ही सरल और सटीक तरीकेसे प्रकट किया।
निर्देशक राही अनिल बर्वे, सह निर्देशक आदेश प्रसाद, क्रिएटिव निर्देशक आनंद गांधी और सिनेमैटोग्राफर पंकज कुमार की इस दुनिया में सोहम शाह ने अपने किरदार को इस तरह जिया के वे इस किरदार के सारे अच्छे-बुरे गुण आसानीसे प्रकट कर पाएं।
शिप ऑफ़ थिसिस (२०१३) जैसी फ़िल्म से अपने फ़िल्मी सफ़र की शुरुवात कर अब तुम्बाड के इस राक्षसी किरदार तक आ पहुँचे सोहम शाह से और भी बेहतरीन किरदार और अभिनय की अपेक्षा की जा सकती है।
०६. आयुष्यमान खुराना (आकाश, फ़िल्म — अंधाधुन)
आयुष्यमान खुरानाने अपनी फ़िल्मो में मध्यम वर्ग के युवक को बखूबी निभाया है, पर अंधाधुन के इस विचित्र किरदार को निभाना एक विशेष प्रयोग ही था जहाँ किरदार संगीत के क्षेत्र में कुछ पाना तो चाहता है पर अंधेपन का नाटक कर सांत्वना भी हासिल करना चाहता है। जब फ़िल्म में किरदार हत्या का जगह पर पहुंचता है, उसके बाद उसके नये रंग देखने को मिलते हैं।
उन दृश्यों में उनके किरदार को शांत रहना पड़ता है, बावजूद इसके के उसकी आँखों के सामने बहोत कुछ घट रहा है, क्योंकि उसने अंधेपन का सोंग रचा है। वहाँ उन्होंने अपना जौहर दिखाया। ये उतने आसान दृश्य नहीं थे क्योंकि उनका किरदार अस्वस्थ भी है और उसी समय उसे ये दर्शाना है के वो कुछ जानता ही नहीं। इन दृश्यों में उन्होंने कमाल का काम किया।
०५. गजराज राव (जितेंदर कौशिक, फ़िल्म — बधाई हो)
बड़ा बेटा शादी के प्लान्स में लगा हुआ है पर पिता है के अपने तीसरे बच्चे की तैयारी में है। मध्यम उम्र के मिडल क्लास जितेंदर कौशिक के इस किरदार में गजराज राव ने कई सारे उतार चढ़ावों को बेहद मनोरंजक और गंभीरता से निभाया।
पत्नी प्रियम्वदा (नीना गुप्ता) के प्रति उनका प्यार, पडोसी और रिश्तेदारों की बेमतलब बातों पर उनके जवाब, अपनी बूढी लेकिन घमंडी माँ के साथ उनका रिश्ता और उन पर नाराज़ बेटे नकुल (आयुष्यमान खुराना) के साथ उनका रिश्ता ये सब उन्होंने कमाल की सरलता से दर्शाया।
एक तरफ जहाँ उन्होंने हास्य व्यंग के दृश्यों में अपना वजन दिखाया, वहीं भावुक क्षणों को भी उन्होंने सरलता और गंभीरता से दर्शाया, जो बिलकुल भी जटिल या मेलोड्रामा नहीं लगे। उनका अभिनय इतना सरल और सादगी भरा था के अगर हम ये कहें के उनके कमाल एक्टिंग के बगैर ये फ़िल्म इतनी मनोरंजक और अच्छी ना लग पाती, तो ये गलत ना होता।
०४. विकी कौशल (कमलेश कन्हैयालाल कापसी, फ़िल्म — संजू)
संजय दत्त के ऊपर बन रही फ़िल्म जिस में रणबीर कपूर मुख्य भूमिका में हो, वहाँ विकी कौशल ने संजू का दोस्त कमली जैसे सहायक किरदार निभाने की जोखिम उठायी, और उसे ख़ूबी से निभाया भी। कमली जो एक सहृदय, सीधा सादा इंसान है, उसके विपरीत है उसका स्टार दोस्त जो गाली गलोच करता है, कभी भी अपने आपे से बाहर चला जाता है, लेकिन इसी दोस्त का कमली एक मज़बूत आधार है।
विकी कौशल ने अपने अभिनय से परेश रावल, जिन्होंने सुनील दत्त की भूमिका निभाई, उन जैसे दिग्गज अभिनेता को भी भूलने पर मजबूर कर दिया। उनका काम इतना पसंद किया गया के वे फ़िल्म के नायक से भी ज़्यादा आकर्षण का केंद्र रहें।
वर्ष २०१८ में मनमर्ज़ियाँ, लस्ट स्टोरीज़ और राज़ी में उनके प्रदर्शन से अलग अलग किरदारों में ढलने की उनकी क्षमता को उन्होंने सिद्ध कर दिया।
०३. नवाजुद्दीन सिद्दीकी (सआदत हसन मंटो, फ़िल्म — मंटो)
उनके कहानियों के अलावा, सआदत हसन मंटो की शख्सियत को लेकर उस ज़माने के लेखक और उनके सहयोगियों में काफ़ी चर्चा रहती थी। नंदिता दास की इस विस्तृत और बेहतरीन बायोपिक में नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने असल जिंदगी के चरित्रों को अपने अफ़सानों से जिंदगी देने वाले इस कथाकार किरदार को जिंदगी दी। इस समाज के पाखंडी और भ्रष्ट लोगों के विरोध में उनकी चिढ़ हो या अपने काम पर गर्व और विश्वास हो या उनके बोलने में आता कटाक्ष हो, जो उनके स्वभाव का एक अंग था, सिद्दीकी हर अंग पर खरे उतरे।
किसी किरदार को साकार करते हुये कभी अचानक उसका हल्का सा छूट सकना वैसे मुश्किल नहीं है, जहाँ हम उस किरदार की ख़ामियों पर जोर देते हैं या उन्हें नजर अंदाज कर देते हैं, पर सिद्दीकी के अभिनय में हम उन सारे पहलुओं को मंटो को बगैर कोई सांत्वना दिये देख पाते हैं। सिद्दीकी अपने बारीकियों से मंटो जैसे महान और उतने ही विवादित लेख़क को हमारे सामने रखते हैं। सच कहें तो वे खुद मंटो बन गये।
०२. रणबीर कपूर (संजय दत्त, फ़िल्म — संजू)
रणबीर कपूर उनके पीढ़ी के सबसे सक्षम अभिनेता हैं इस बात पर किसी को कोई आशंका नहीं होगी। अगर संजय दत्त जैसे हमेशा परेशानियों से घिरे किरदार को कोई सांत्वना प्रदान कर सकता था तो वो सिर्फ़ रणबीर ही थे।
रणबीर कपूरने ना सिर्फ़ संजय दत्त के शारीरिक हालचाल और हावभाव में समानता दर्शायी, जो की कहीं भी मिमिक्री नहीं लगी, बल्कि उनके भावनिक क्षणों को भी उतने ही संजीदगी से पेश किया।
लेखक निर्देशक राजकुमार हिरानी के असमान कथा सूत्र के बावजूद रणबीर ने इस किरदार की संवेदनाओं को उसकी जड़ से समझा और पकड़ा, जिससे ये किरदार अधिक रोचक लगने लगा और उसे हम अधिक सहानुभूति से देखने लगे, जो शायद असली संजय दत्त को भी नसीब नहीं हुई। उन्होंने इस फ़िल्म को गहराई प्रदान की जब की फ़िल्म के स्क्रिप्ट में संजय दत्त के किरदार को बढ़ा चढ़ा कर पेश किया गया था।
०१. रणवीर सिंह (अल्लाउद्दीन खिलजी, फ़िल्म — पद्मावत)
ऊपरी तौर पे देखे तो पद्मावत का अल्लाउद्दीन खिलजी ये एक राक्षसी स्वभाव का ख़लनायक और एक काफ़ी अहम पात्र है, पर इसे निभाने के लिये काफ़ी तैयारी वाले और महत्वकांक्षी अभिनेता की आवश्यकता होती है, जो इसे पूरा न्याय दे सके। और फ़िल्म के निर्देशक संजय लीला भन्साली बाकी पात्रों से ज़्यादा इस पात्र के प्रेम में अधिक लगते थे।
रणवीर सिंहने इस मौके काे ना सिर्फ़ हासिल किया बल्कि अपने आप को शारीरिक और मानसिक रूप से इस भूमिका के लिये तबदील किया। रणवीर ने इस किरदार काे इस खूबी से निभाया के लम्बे बाल, खुली छाती, औरतो में खेलनेवाला, कविता और सेक्स काे चाहनेवाला, निर्दयी, परिणाम की चिंता ना करनेवाला खिलजी उन्होंने मानो हूबहू साकार किया जो आसपास के अच्छे स्वभाव के पात्रों से भी ज़्यादा असल लगने लगा।
फ़िल्म में खिलजी के पतन का दर्शन राजपूतों के सभ्य बर्ताव के बिलकुल विपरीत है। फिर भी रणवीर सिंह ने अपने किरदार को इस तरह से निभाया के फ़िल्म के अच्छे पात्र, पद्मावती और रतन सिंह, जिन्हें दीपिका पादुकोण और शाहिद कपूर ने अभिनीत किया, बिलकुल शांत लगे। उन्हें भले ही पद्मावती ना मिली हो, पर पूरी फ़िल्म में बस वही एकमात्र याद रहते हैं।